//अपना पथ ,अपनी मंजिल//
धूल भरी थी,
शूल पड़ी थी ।
फूल किसने देखें,
मुसीबत खड़ी थी ।।
पथ पथरीला,
सूझती न राह ।
मंजिल मुश्किल,
थामे था चाह ।।
कंकड़ चुभते थे,
पग डगमगाते थे ।
डगर पर अडिग था,
तूफानों से न घबराते थे ।।
कीचड़ से लथपथ,
होकर आगे बढ़ता था ।
कैसा दौर निकाला,
तन तरबतर लगता था।।
कश्ती कौन चलाए,
नदियों में उफान ।
हवाओं का बदला रुख,
चहुँओर है तूफान ।।
करता गया संघर्ष,
ले कर्म की सत्यता ।
सबका मिला साथ,
फिर मिली सफलता ।।
छँट गए बरसों के जमे बादल ।
मंडराते थे जो लिए रंग काजल ।।
देख देख उनको मन घबराता ।
बरसते देख अब मन हर्षाता ।।