अपना नैनीताल…
अपना नैनीताल…
साठ मनोरम तालयुत, भव्य रूप अवदात।
षष्ठिखात के नाम से, हुआ प्रथम विख्यात।।
लिए सती-शव शिव चले, होकर जब बेचैन।
तन के अनगिन भाग में, गिरे यहीं थे नैन।।
मंदिर देवी का बना, पाया नैना नाम।
भक्तों के उद्धार हित, महापुण्य का धाम।।
अत्रि, पुलस्त्य और पुलह, पौराणिक ऋषि तीन।
गुजर रहे इस मार्ग से, रुके प्यास – आधीन।।
नैसर्गिक सौंदर्य यहाँ, बिखरा देख अकूत।
बढ़ी रमण की लालसा, हुआ हृदय अभिभूत।
खोदी भू त्रिशूल से, लेकर प्रभु का नाम।
त्रिधार युत ताल बना, त्रिऋषि सरोवर धाम।।
पी. वैरन की कल्पना, हुई सत्य साकार।
झीलों की नगरी बसी, मिला भव्य आकार।।
ये बर्फीली चोटियाँ, उतरे ज्यों घन पुंज।
मन को हरती वादियाँ, लता-गुल्म औ कुंज।।
नीम करौली तीर्थ है, कहते कैंची धाम।
बाबा के आशीष से, सधते सारे काम।।
छटा अनूठी रात की ,जगमग करतीं झील।
लहर-लहर बल्वावली, दीपित ज्यों कंदील।।
हिम-आच्छादित चोटियाँ, ऊपर नैना पीक।
चप्पा-चप्पा शहर का, दिखे यहाँ से नीक।।
स्नो व्यू और हनी बनी, दृश्य नयनाभिराम।
हरीतिमा पसरी यहाँ, मोहक सुखद ललाम।।
लैला-मजनू पेड़ दो, बने झील की शान।
मौसम में बरसात के, करते आँसू दान।।
हरी-भरी हैं वादियाँ, सात मनोरम ताल।
मौसम जब अनुकूल हो, आएँ नैनीताल।।
© डॉ. सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद
चित्र गूगल से साभार