अपना तन
यह तन बड़ा सरल,
कब बन जाता गरल,
किसी को नही है पता,
धूल धुँए का चहुँओर छाता,
जल भी प्रदूषित,
वायु भी प्रदूषित,
खान पान में समाया कीटनाशक,
मक्खी मच्छर बीमारियों के वाहक,
प्रातः रवि भी धूमिल हो गया,
संध्या में चाँद भी कही खो गया,
कोहरे ने ओढ़ ली एक चादर,
संस्कृति का भी हो रहा खूब निरादर,
अन्न फल सब्जी इनमें मिला रसायन,
देशी खेल कूद का हो गया पलायन,
कितनी जिम्मेदारी तुम उठाते,
पल भर का विश्राम नही पाते,
थोड़ा तन के लिए जी ले,
थोड़ा वतन के लिए जी ले,
तन को भी विश्राम चाहिए,
मन को भी विश्राम चाहिए,
थोड़ा हँस ले दूर कर ये चिंता ,
तन को सुत समझ बन पिता,
क्रोध लोभ मोह को न आने दे पास,
यह सुख के रिपु भटकते आसपास,
धैर्य धर्म संयम नीति और सदाचार,
इनके बिना जग में हो रहा हाहाकार,
यह जग डूबा इस चिंतन में,
कैसे स्वस्थ हो सब अपने तन में,
।।।जेपीएल ।।