अपना गांव
जाकर देखेा, गाँवों के वे कुआँ, नदी, तालाब, झील सब,
तुमको लगता पानी, मेरे लिये वही तो गंगाजल है।
बिरिया, झरिया के हैं बेर,यहाँ वहाँ, खेतों की मेंड़ों पर,
गदराते हैं आम, और जामुन, खाते हैं ऊपर चढ़ कर।
तुमको लगते होंगे खट्टे, मुझको मीठे अमृत फल है।
तुमको लगता पानी, मेरे लिये वही तो गंगा जल है।
मिट्टी में सोंधापन हर अषाड़ में, कभी खुला आकाश,
खेत किनारे ही बबूल पर, रात जुगनुओं का प्रकाश।
भले तुम्हें तो लगे अँधेरा, राह दिखाने को सम्बल है।
पंछी के कोलाहल, भोंरों की गुंजन, सुबह शाम को,
ये भरते आनन्द मनों में, ताजा करते पुऩः काम को।
तुमको कैसा लगता, पर सच में, आनन्द यहाँ प्रतिपल है।
गाँवों की गलियाँ, हरयाली खेतों की, मन प्रसन्न करती,
यहाँ प्रदूषण मुक्त वायु, आपस में सद्भाव सदा भरती।
अगर देखना भीड़ यहाँ, शाम को, चोपालों पर हलचल है।
घर आँगन की सब्जी, दालें, बस कढ़ी भात संग,
छप्पन व्यंजन से भी बढ़ कर, खाते हैं जब बैठें संग संग।
तुमको कैसा लगे, यहाँ तो होता सब का ही मंगल है।
होली और दिवाली, सावन सभी मनाते वे सब मिल कर,
साँयकाल बैठ कर गाते, भजन सुनाते वे सब मिल कर।
सीधे सच्चे परम हितेषी, भाव यहाँ मन में निश्छल है।
आपस में मिल कर रहते, वे लड़ाई झगड़ा क्या जाने ?
सभी बराबर ,ऊँच नीच का, भेदभाव भी कब वे मानें ?
तुम मानो या ना तुम मानो, पंथ यहाँ का यही सफल है।
गृह कुटीर उद्योग यहाँ पर, आवश्कता पूरी करते,
सादा जीवन कम इच्छायें, स्वाभिमान को जीवित रखते।
व्यस्त सभी हैं, अति प्रसन्न हैं, भाग्य यहाँ सबका उज्जवल है।
चन्दन, हल्दी के उपटन से , निखरी जिसकी कोमल काया,
हाथों पावों में मेंहदी, माथे पर बिन्दी से उसे सजाया।
तुमको क्या लगता क्या जानें? उसमें भाव भरा निश्छल है।
सदा नगर से दूर गाँव में, होता सबका ही मंगल है