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28 Apr 2019 · 1 min read

अपनापन

अपनापन
(1)
शहर की ओर चला दर दर भटका,
नहीं मिला कोई अपनापन।
भूखा प्यासा जीवन अधर में लटका,
नहीं मिला कोई अपनापन।
(2)
टुटा सा हारा सा मन था मेरा,
कोई नहीं मिला अपना सहारा।
लड़ाई झगड़ा होता तेरा मेरा,
जीवन को न समझा मानुष बेचारा।
(3)
प्रेम स्वाभिमान की ज्योति जलाये रखा,
रिश्ता की आत्मसम्मान बचाये रखा।
मेहनत की रंग ऐसा पलटा की,
दुनिया उस पर प्रेम लुटाये रखा।
(4)
प्रेम में एक दूजे देखते हैं कई सपने,
दिल साफ है तो गैर भी होते है अपने।
हमेशा सरल सादगी की होती है बड़प्पन,
जीवन की असली परिभाषा यही है अपनापन।
**************************************
रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार छ.ग.
Mo 8120587822

Language: Hindi
1 Like · 270 Views
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