अपनत्व की भावना
अपनत्व है मुझे,
इन पत्थरों से भी,
जिस पर अपना नाम लिखता हूंँ ।
अपनत्व है मुझे,
इन हवाओं से भी,
जिनसे मैं अपनी खबर देता हूंँ ।
अपनत्व है मुझे,
इस जलती आग से भी,
जो अंधेरे में राह दिखाता है।
अपनत्व है मुझे,
इन नदियों से भी,
जिससे जीवन जीता हूंँ।
अपनत्व है मुझे,
इन वृक्षों से भी,
जिससे अपनी क्षुधा शान्त करता हूंँ।
अपनत्व है मुझे ,
इन पुष्प से भी,
जो खुशियों की सौगात देते हैं।
अपनत्व है मुझे ,
इन पंछियों से भी,
ये तो मेरा भोर कराते हैं।
अपनत्व है मुझे,
इस मिट्टी से भी ,
जिसमें अंत समय पर मिल जाता हूंँ।
अपनत्व है मुझे,
आप से भी,
आप ही तो याद दिलाते हैं।
आज नहीं तो कल,
उनसे भी अपनत्व होगा,
वही तो मेरे मेहमान हैं।
#बुद्ध प्रकाश;मौदहा, हमीरपुर ।