अन्नदाता किसान कैसे हो
सूखी धरती धान कैसे हो,
अन्नदाता किसान कैसे हो।
चेहरे पर मेहनत की लकीर
कितना बेबस बना अधीर
धूप में झुलसता ये शरीर
खाली झोली जैसे फकीर
घर में गेहूं पीसान कैसे हो,
अन्नदाता किसान कैसे हो।
बैंक का क़र्ज़ सर पे चढ़ा
लेनदार यूं घर में खड़ा
दिमाग तनाव में सड़ा
बिमार हो खाट पे पड़ा
भारी रात बिहान कैसे हो
अन्नदाता किसान कैसे हो
रात उदास आंखों में कटे
बेटी की शादी कैसे निपटे
खेत बैनामा कलेजा फटे
सोचते-सोचते सांस घटे
ज़िन्दगी आसान कैसे हो,
अन्नदाता किसान कैसे हो।
नूर फातिमा खातून” नूरी”
ज़िला-कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित