अन्तिम सत्य
मानूँ किसको
अन्तिम सत्य मैं
ईश्वर को
या प्रेम को
या फिर देह को
या देह की यात्रा को
अटल, अमर है
शाश्वत है ईश्वर
परमात्मा का अंश
उसी परम से निसृत
पृथ्वी पर आया
माँ के गर्भ से पैदा
पिता ने स्वरूप दिया
या प्रेम को मानूँ
अन्तिम सत्य
प्रेम जीवन का आधार
प्रेम ही जीवनानन्द
प्रेम तुम मेरा
इसलिए मेरा जीवन सँवरा
जन्म से ले आज तक
होश सँभाला
तब से आज तक
ना जाने कितने टुकड़ों में
टूटी हूँ अब तक
सँभाला मेरा जीवन
बन के प्रेम तुमने
आज मेरा अस्तित्व तुमसे
मेरी पहचान तुम
मैं केवल तुम से हूँ
या इस देह को
अन्तिम सत्य मान लूँ
जो जन्म से मृत्यु तक
अनेकों प्र�हार सहन करती
सु�खद दुखद साज श्रृंगार के बीच
खट्टे मीठे अनुभवों को लेती रही
आज वही देह पडी है
धरती पर
अन्तिम यात्रा के लिए
पुकारती है अपने लोगों को
अन्तिम यात्रा से पूर्व
साज श्रृंगार सब तैयार हैं
जाने के लिए
उस लोक में
जहाँ से आई थी
पर मैं शान्त
सोचता हूँ कि काश
अन्तिम सत्य यहीं है
जन्म बचपन
किशोरावस्था
जरा मृत्यु सत्य है
जीवन के
परम सत्य ईश्वर है
जिसके हाथ की मै मात्र
कठपुतली हूँ