अन्तहीन इच्छाएं
इस अर्थकरी युग में।
अनाचारयुक्त भूतल में।।
अर्थविहीन हो मानव।
बनता जा रहा दानव।।
मानव की अन्तहीन इच्छाएं ।
अभिसिक्त है करती जा रही…
मनुज मन में दुर्भावनायें।।
चहुँओर है होता स्व का महिमामण्डन।
विलुप्त प्राय: है हो गया सत्य का अभिनन्दन ।।