अन्तर
लघुकथा
अन्तर
*अनिल शूर आज़ाद
आज वह बहुत खुश था। थोड़ी देर पहले गार्डन में प्रेयसी से हुई मुलाकात की मधुर यादें उसे रह रहकर पुलकित कर रही थी। विशेषकर उसकी खरे सोने-सी खनखनाती हंसी पर तो..वह लट्टू था।
एक फ़िल्मी गीत गुनगुनाते वह घर में घुसा ही था कि बहन के सहपाठी राजीव को ड्राइंगरूम में देखकर उसका मूड उखड़ गया। अपनी बहन को हंसकर बात करते पाकर तो उसका खून खौलने लगा।
राजीव के निकलते ही वह बहन पर बुरी तरह चिल्ला रहा था “कैसे बेशर्मों की तरह दांत फाड़ रही थी..भले घरों की लड़कियां ऐसी होती हैं क्या..”