अन्तर्मन
चिंतन-मंथन कीजिए , अन्तर्मन से रोज ।
दिव्य दृष्टि होगी प्रखर , सहज सत्य की खोज ।।१
राधा जी धड़कन बसे, अन्तर्मन में श्याम।
रोम-रोम सुमिरन करें, हर पल तेरा नाम ।। २
अन्तर्मन में हर दिवस, उठते कई सवाल।
कुछ खामोशी से रहे, कुछ कर उठें बवाल।।३
जब अन्तर्मन से मिले,कोई आशीर्वाद।
जागे किस्मत इस तरह, दुनिया करती याद।।४
अन्तर्मन की वेदना,उभर कंठ में आय।
अधरों को छूते हुए, मुख से निकले हाय।। ५
देना दुख मन को नहीं, वहाँ बसे भगवान।
अन्तर्मन की आह से, होता है नुकसान।। ६
कितना अद्भुत सोचता, बिन बाधा के मौन।
अन्तर्मन की सोच से, बच पाया है कौन।। ७
अन्तर्मन में,जब कभी, खुद की खुद ठन जाय।
कलम पकड़ते हाथ में, फिर कविता बन जाय।। ८
निरंतर, अनवरत हुए, अन्तर्मन पर घात।
पी अंतस पीड़ा सभी, गीत खुशी के गात।। ९
जीवन का दर्पण यही, अन्तर्मन को खोल।
जाने कितने भाव हैं, हर भावों को तोल।। १ ०
अंतर्मन करता सदा, सुन लो अंतर नाद।
हटे मैल मन की तभी, रहे दूर अवसाद।। १ १
हैं अनुरंजित राग-रस, कई भाव जज्बात।
चिन्तन मंथन से समझ, अंतर्मन की बात।। १ २
अन्तर्मन देता करा, स्वयं आत्म का ज्ञान।
चिन्तन मंथन से हुआ, सही गलत का भान।। १ ३
काम गलत कोई करे, अन्तर्मन झकझोर।
दर्द खुशी महसूस कर, भींगे नैना कोर।। १ ४
अन्तर्मन टूटा लगे, धड़कन लगता जाम।
समझो अपनो ने किया, औरों जैसा काम।। १ ५
साजन मैं किससे कहूँ, अन्तर्मन की बात।
आन मिलो अब साजना, कटे नहीं दिन – रात।।१ ६
????—लक्ष्मी सिंह ?☺