अन्तरिक्ष पार ◆◆
अन्तरिक्ष पार
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क्या मेरे ये दो नेत्र,देख सकतें हैं..
इस वायु, मेघ, अम्बर के ऊपर,
चाँद, सितारों और ग्रहों के पार,
जहां ना मोह है, ना विक्षोभ है,
ना दुनिया का दोहरा व्यवहार,
बस एक पारदर्शी चादर में लिपटे,
मेरे ये अनसुलझे विचार,
आज देखा अपने अंतर्मन में,
खुद की आंखों से कर गहन विचार,
सृष्टि छुपी अंतर्निहित,
फिर क्यों जाना अंतरिक्ष पार।
© ऋषि सिंह “गूंज”