अनोखे दोस्त
गुंजन की जैसे ही नौकरी लगी घर में सब चिन्तित हो गये कि कैसे रहेगी वह दूसरे शहर में.. वो भी अकेले ? गुंजन नियम से चलने वाली बिटिया थी । आजकल के बच्चों से थोड़ा हटकर ..एकदम पुराने समय की जिम्मेदार बच्ची थी । ना पिज्जा बर्गर का शौक, ना पार्लर का …ना अंग्रेजी गानों पर डांस करती थी, ना बाहर घूमने की जिद करती थी ..उसकी मित्रता भी अजीब चीजों से थी जैसे एक आम का पेड़ .. उसका सुख-दुख का साथी था, तो कालोनी के कुत्ते एवं उनके बच्चे सब उसके प्रगाढ़ मित्र थे …भले वो स्वयं के लिए रोटी ना बनाये पर उनके लिए जरूर बनाती …गुंजन अपने कार्यालय की भी लोकप्रिय कर्मचारी थी। वो जिस विभाग में थी वहां गन्ने में रिसर्च होती थी …बड़े-बड़े खेत थे नील गाय, साँप अजगर सब प्रकार के जानवर थे …गुंजन को जीवन में किसी से भी डर नहीं लगता था वो सबके साथ एक मैत्री भाव रखती … पर उसके इस स्वभाव के कारण उससे कई लोग बहुत चिढ़ते थे तथा उससे दूरी बनाकर रहते थे । कई महिलाएं उसको देखते ही मुस्करा देतीं कि चल दी कुत्तों के पास तो कई लड़के उसके मुँह पर कह देते ‘अरे गुंजन… हम लोगों से भी दोस्ती करो ना ..’वो हँस कर टाल देती …
दिन बीतते रहे कि एक दिन वो हो गया जिसकी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी …रोज की तरह गुंजन अपने कार्यालय से घर पैदल ही आ रही थी कि उसको लगा हवा ठंडी और तेज चलने लगी है , तो वो तेज कदमों से घर की तरफ चल पड़ी …अचानक खेतों के बीच से दो लम्बे चौड़े आदमी निकले और उसके सामने आकर खड़े हो गये …गुंजन को अचानक ही भय लगा, मन अनहोनी की आशंका से काँप उठा …तब तक एक आदमी आगे बढ़ा और बोला ‘कब तक पेड़ पौधों के साथ रहोगी यार, आओ मेरी बाँहो मे आ जाओ.. ‘उन दोनों के इरादे भाँप कर गुंजन जोर से चीखी …”टामी….शेरू …डमी बचाओ” और वो तेजी से भागी..पर जब समय खराब होता है, तो कुछ ना कुछ अवरोध भी आते रहते हैं..उसका एक सुतली में पैर फँसा और वो लुढ़कती हुई सड़क के किनारे पर पहुँच गई । वो दोनो उसके पीछे वीभत्स हँसी के साथ आ रहे थे ..’भागो मत मेरी जान यहाँ कोई नहीं आएगा …’कहकर वो जैसे ही आगे बढ़े खेत से निकल कर शेरू ने उनके चेहरे पर पंजे से वार किया, उधर डमी भी गुर्राता हुआ दौड़ा …थर थर काँपती हुई गुंजन स्तब्ध थी । अपनी असंयत साँसो को रोकती हुई वो उठी तो सामने का दृश्य देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गये … चारो कुत्तों ने उन दोनो शैतानों को घेर रखा था और उनको आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे कि अचानक शेरू एक आदमी की छाती पर चढ़ गया और जगह जगह काटने लगा, छोटी डाॅगी उसके पास गई और कुर्ता खींचकर घर की तरफ इशारा करने लगी ..पलभर के लिए वो अपने सारा डर भूल गई और चीखने लगी “छोड़ना नहीं..शेरू! मार और मार” कहकर वो भावावेश में रोने लगी …वो दोनो जमीन पर गिर गये, चारो कुत्तों ने उन्हे अधमरा कर दिया था …वो चुपचाप रोती-रोती अपने घर की तरफ चल पड़ी और अपने निस्वार्थ दोस्तों पर गर्व करती हुई…घर पहुँच गई … घर के भीतर पहुँचते ही जोर जोर से रोने लगी …
तब तक दरवाजे पर खटका सा हुआ तो वो घबराकर उठी और झरोखे से तो देखा कि घबराहट में वो पर्स सड़क से उठाना भूल गई थी…शेरू वो पर्स मुँह में दबाये सामने खड़ा था ..उसके पीछे तीनो कुत्ते बहुत स्नेह के साथ भूं-भूं करके दुम हिला रहे थे …गुंजन उन सब पर हाथ फेरती रही और एक अनोखे प्रेम भाव से विह्वल हो..उन सबको कुछ खिलाने के लिए उठ गई ..।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ