“अनोखी शादी” ( संस्मरण फौजी -मिथिला दर्शन )
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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कैजुअल लीव
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मेरे घर दुमका से मेरे पिता जी का लिखा एक पोस्टकार्ड आया !-
“बेटे ! छुट्टी लेकर जल्दी आ जाओ ! इस साल तुम्हारी सभागाछी सौराठ से शादी होगी ! हमलोगों को मधुबनी जाना है ! 20 जून से 30 जून तक सभा चलेगी ! इसी बीच में तुम्हारी शादी होगी !”
मुझे शादी की जितनी खुशी नहीं थी उतनी उत्सुकता छुट्टी लेने को थी ! बैसे कहने के लिए मेरी मेडिकल की मिलिटरी ट्रैनिंग ,2 टेक्निकल ट्रैनिंग बटालियन, आर्मी मेडिकल कॉर्पस सेंटर और कॉलेज, लखनऊ छावनी में चल रही थी ! भयानक प्रशिक्षण से कुछ दिन तो राहत मिलेगी !
शाम 7 बजे रोल कॉल में मैंने रिपोर्ट किया ,-“ घर से चिठ्ठी आयी है ! मुझे छुट्टी चाहिए !”
सुबह कमांडींग ऑफिसर ने 18 दिनों की छुट्टी दे दी ! ट्रैनईस को 10 दिनों की ही छुट्टी मिलती थी ! मेरे केस में अनुनय विनय के बाद 18 दिनों की मिल गयी !
20 जून 1974 को अमृतसर मेल से चला और दूसरे दिन 21 जून 1974 को दुमका पहुँच गया ! बस 21 तारीख अपने घर में रहे और दूसरे दिन 22 तारीख को मधुबनी के लिए निकल पड़े ! पिता जी , मेरे बड़े भाई और मैं पिलखवाड पहुँच गए ! पिलखवाड मेरा मामा गाँव है ,मेरे भाई की शादी भी वहीं हुई है और मेरी छोटी बहन का भी ससुराल पिलखवाड ही है ! हमलोग छोटी बहन के घर पर रुके !
सभागाछी सौराठ
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मधुबनी से पश्चिम 8 किलोमीटर सौराठ गाँव मे हरेक वर्ष वैशाख में 10 दिनों के लिए सभा लगती है ! यह सभा सिर्फ मैथिल ब्राह्मण के वर और कन्या के विवाह के लिए लगती है ! आस -पास के गाँवों के सिर्फ लड़के और लड़के के पुरुष संबंधी यहाँ आते हैं ! अलग -अलग गाँवों के अलग- अलग पेड़ों के नीचे कम्बल बिछाया जाता है ! लोग अन्य गाँव के निकट पहुँचकर योग्य वर का चुनाव करते हैं ! पंजीकार के पास सिद्धांत दोनों पक्ष के लिखाए जाते हैं और उसी दिन या एक दो दिनों के बाद शादी हो जाती है !
पिलखवाड पूवारी टोल के कम्बल पर हम लोग बैठ गए ! बहुत से गाँव के लोग आए ! वे देखते और बैठकर कुछ पुँछते और चले जाते ! दरअसल यह दृश्य कहीं देखने को नहीं मिलता है ! सारे के सारे लाल- पीले धोती पहन रखे थे ! मैंने भी लाल धोती पहन रखी थी ! रंगीन कुर्ता और सर पर मिथिला का लाल पाग !
कई विभिन्य गाँवों के लोग आए ! उनलोगों ने मेरा साक्षात्कार लिया ! कितने लोग अपनी बेटी का व्याह दूर में नहीं करना चाहते थे ! मौलिक रूपेण हमलोग यहाँ के ही हैं ,पर वर्तमान में दुमका रहने वाले को मिथिलवासी भदेश और दक्षिणाहा कहते हैं इसलिए हमें दूर के ही समझते हैं !
सौराठ के श्री उदित नारायण झा और मेरे पिता पंडित दशरथ झा दोनों पटना के जेल में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान थे ! दोनों घनिष्ठ मित्र थे ! सभा गाछी के करीब श्री उदित बाबू घर था ! वहीं हमलोगों ने भोजन किया ! भोजनोपरांत उदित बाबू ने प्रस्ताव रखा ,-
“ पंडित जी ! क्या आप अपने लड़के को दे सकते हैं ?”
मेरे पिता जी ने जवाब दिया ,-
“ लक्ष्मण तो आपका ही लड़का है ,आप जैसा ठीक समझे !”
मैं खुश था मेरी शादी सौराठ हो रही है ! मिथिला में सौराठ गाँव बड़ा ही प्रसिद्ध है !
सभा लौटते -लौटते पता लगा लड़की उदित बाबू की नतीनी है और वे लोग बेगूसराय के रहने वाले हैं !
मैंने अपने पिता जी को स्पष्ट शब्दों में कहा ,
“ बाबू जी , शादी मैं करूँगा तो मिथिला में, नहीं तो सभा में आने का क्या मतलब ?”
हमलोग सभागाछी पहुँच गए ! पिलखवाड वाले श्री उमानाथ झा शिबीपट्टी के लड़की से शादी करवाना चाहते थे ! उनलोगों को हमलोगों का संबंध भी पसंद आया !
सभागाछी में युद्ध का माहोल
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सौराठ के श्री उदित बाबू और शिबीपट्टी के श्री उमानाथ जी दोनों संबंध से समधी थे ! श्री उदित बाबू को जब पता लगा कि मैं उनकी नतनी से विवाह नहीं करना चाहता हूँ तो एक युद्ध का माहोल बनने लगा ! किसी भी लड़की को हमलोगों ने नहीं देखा था ! और ना देखने की प्रथा थी !
सौराठ के उनदिनों विजय झा दवंग माने जाते थे ! और यह क्षेत्र भी उन्हीं का था ! यहाँ शादी के लिए लड़के को उठा लिए जाते हैं ! सौराठ वाले एक तरफ और पिलखवाड और शिबीपट्टी वाले दूसरे तरफ !
विजय ने कहा ,-
लड़का तो किसी हालत यहाँ से अब जा नहीं सकता है ! यह सौराठ के प्रतिष्ठा की बात है ! पिलखवाड के रामचन्द्र ठाकुर नामी पहलवान थे वे हमारे साथ ही थे ! उन्होंने भी विजय को कहा ,-
“ देखिए , शादी -विवाह विवादों के नींव पर नहीं होनी चाहिए ! कल हमलोग आएंगे फिर बैठके बातें होगी !”
अभी तो कुछ दिन और सभा रहेगी ! किसी तरह हमलोग निकलकर मधुबनी होते पिलखवाड पहुँच गए !
और हमलोगों ने निर्णय किया कि अब सभागाछी जाना खतरे से खाली नहीं !
पिलखवाड से ही विवाह की योजना
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मेरी छुट्टी बीत रही थी ! “अब शादी हुई तो ठीक है नहीं तो वापस जाना होगा !” बैसे पिलखवाड के ग्रामीण लोगों की अभिलाषा थी कि मेरी शादी जल्द हो जाए ! मैंने तो सिर्फ सुना था कि लड़की बहुत अच्छी है ! घर की महिलाओं का भी समर्थन था ! मेरे बहनोई से बड़े उग्रमोहन ठाकुर को शिबीपट्टी भेज गया ! वे पैदल मगरपट्टी ,देहट ,बेल्हबाड़ होते हुए शिबीपट्टी पहुँचे ! दूसरे दिन मेरे होने वाले ससुर अपने साइकिल पर बैठकर पिलखवाड आए ! बहुत सौहार्द पूर्ण मेरे पिता जी से बातें हुईं ! दोनों पक्ष के परिचय लिए गए ! सिद्धांत के लिए फिर सौराठ जाना था ! सारे पंजीकार ( Registrar) मिथिला के वहीं बैठते हैं ! दोनों पक्ष को सिद्धांत दिये जाते हैं ! तब शादी की प्रक्रिया हो सकती है ! तीसरे दिन सिद्धांत मिला और 3000 रुपये भी मेरे होने वाले ससुर श्री उमानाथ झा जी ने मेरे पिता को दिया ! शादी 28 ,जून ,1974 को तय की गई !
बारात प्रस्थान
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पिलखवाड़ से शिबीपट्टी गाँव -गाँव होते हुए 10 किलोमीटर था ! वर्षा खूब जमकर हुई थी ! मधुबनी की चिकनी मिट्टी में फिसलाहट अधिक होती है ! खेत और पगदंडिओं को पार करते कुल 9 बराती और 1 लोचना खबास चल पड़े ! महिलायें मंगल गीत गायीं ! सबने विदा किया ! गाँव से निकालने के बाद महराजी पोखर था ! बाढ़ के पानी चारों ओर फैले थे ! महराजी पोखर के पास रास्ते में घुटने तक पानी था ! सब धोती पहने हुए थे ! सबों ने समेट लिया ! पर लोचना खबास ने मुझे अपने कंधे पर उठा लिया ! मगरपट्टी गाँव में मुझे लोचना खबास ने उतार दिया ! फिर देहट गाँव से गुजरे और बेल्हबाड़ पहुँचे ! लोगों ने वहाँ अपने- अपने पैर धोए, चाय पिया ,पान खाए और फिर शिबीपट्टी के लिए चल पड़े ! मेरे होने वाले बड़े साले श्याम बाबू हठधड़ी के लिए शिबीपट्टी आए थे ! वे पहले पहुँचकर हमलोगों के आने का संदेश उन्होंने दे दिया ! पहुँचने पर स्वागत हुआ ! और शादी हो गई ! दूसरे दिन बारात को खिलाने के बाद उन्हें धोती ,कुर्ता पाग और बिदाई में जनऊ सुपड़ी और द्रव्य दिये गए और विदा किया गया ! मैं चार दिन ससुराल में विधि -विधान के लिए रुका रहा और फिर दुमका होते हुए लखनऊ पहुँच गया !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
26.11.2023