अनोखी मुहोबत
कोई आज भी रूह बनकर ,
मुझमें समाता ज़रूर है।
अकसर चुप सा रहता है ,
शायद मुझसे झिझकता होगा ।
वो मुझसे किसी न किसी बात पर ,
खफा सा रहता है जाने क्यों ?
ख़फ़ा है वोह शख्स।
मगर तन्हाई में मुझे याद करता है
जरूर वो तभी तो !
आज भी वक़्त निकाल कर ,
रेत पर मेरा नाम लिखता ,
और फिर मिटाता ज़रूर है।
कभी समझ न पाए हम उसके ,
मुहोबत का अनोखा अंदाज।
मगर यह यकीन तो है मुझको ,
वो मुझसे मुहोबत करता जरूर है।