‘अनोखा रिश्ता’
रिश्तों पे ठिठकी
फ़क़त उलझने थी!
ना वो तुम रहे थे
ना वो मैं बची थी!!
कभी जो थी तेरी
ये स्मित अकेली
नयन बिन थे सपने
नमी इक सजी थी
मन पे बना था
महल भोला-भाला
जहाँ थी तू रानी
वहाँ का मैं राजा
मौसम था अल्हड़
ना तल्ख़ी कभी थी!
ना वो तुम रहे थे
ना वो मैं बची थी!!
थे चेहरे पे तुमने
संदेशे उकेरे
उजाले भरे थे
ठहाकों मे तेरे
वो मेरी हथेली
तुम्हारी ज़मी थी!
ना वो तुम रहे थे
ना वो मैं बची थी!!
वहाँ बंध गया था
सुलभ सा वो बंधन!
थी सँकरी वो गलियाँ
अमर था वो जीवन!!
भले हम थे छोटे
वो दुनिया बड़ी थी!
ना वो तुम रहे थे
ना वो मैं बची थी!!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ