पापा सुनने को तरसे कान
आपको सुनाऊँ एक गज़ब कहानी
सुन आप भी सोच में पड़ जाएँगे
वाक़ई क्या ऐसा होता है
या हो सकता है?
पिता – पुत्री की एक कहानी
है रोचक सुनने में जानी
कहो इसमें बात क्या है
भला इसमें राज क्या है?
दूर रही बचपन में जिनसे
आते जब क्या उन्हें पुकारे
बचपन की तो याद नहीं
पर बात अभी की कहती हूँ।
रिश्ता है ऐसा दोनों का
केवल आहटों में समझी जाए
पिता शब्द सुनने को
जिनके कान तरस जाए।
कौन समझे इस बिडंबना को
दोष तो पुत्री पर आएगा
पर दिल में कोई बात नहीं
ये तो बस जज़्बात हैं।
बात है बस इतनी सी
शुरुआत हुई बचपन में
लग न पायी आदत पापा कहने की
वो आज तक मुश्किल बन पड़ी है।
प्रत्यक्ष पापा संबोधन करना
हो गया बड़ा मुश्किल है
कहता दिल,कोशिश तो कर ले
पर नाकाम हो जाता है।
बचपन में जैसे बच्चे को
शब्द न आता ठीक से
तोतली बातें करता है
ठीक वैसी हालात हुई है।
पीछे से वो कहती पापा
मुँह पर न कह पाती है
संबोधन को तरसे बेचारे
फिर भी हालत वैसी है।
हूँ हाँ से वो काम चलाती
घर में माँ को हथियार बनाती
कुछ भी कहना बात हो
यहाँ – वहाँ से स्थानांतरण करवाती।
अब तो ऐसा ही होता है
वर्षों की आदत लगी है
मालून न कब तक चलेगा
या जैसा है वैसा रहेगा।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)