अनोखा उपाय
मुख्य सड़क पर भारी वाहनों का आवागमन और उन से उत्पन्न शोर ज़ारी था। जिसका अन्दर की गली में असर न के बराबर था, जहाँ सड़क पर तमाशाइयों का हुजूम बढ़ता जा रहा था। जब काफ़ी भीड़ एकत्रित हो गई तो उसने बीन बजाना बन्द कर दिया। सांप अभी पिटारे के अंदर ही था। जबकि खूंटी से बंधा नेवला इधर-उधर बेचैनी से चहल-कदमी कर रहा था। नेवला शायद तमाशाइयों की भीड़ से भयभीत था। स्त्रियों, बच्चों के अलावा आदमियों की भी अच्छी-ख़ासी भीड़ भीतर की गली में जमा हो गई थी। जिस कारण गली से आने-जाने वाले दोपहिया वाहनों को निकलने में तकलीफ़ हो रही थी। कुछ साइकिल वाले भी तमाशा देखने के लिए रुक गए थे। साथ ही बढ़ती जा रही थी, रह-रहकर गर्मजोशी से तालियों की आवाज़ें और बच्चों का शोर तथा बीच-बीच में सीटियों की आवाज़ें। जो भीड़ से ही कुछ मनचले बजा रहे थे। शुरू में सपेरे ने जो तमाशा दिखाया, उसमें वह एक-के बाद एक लोहे के छोटे—बड़े गोले निगलता—उगलता रहा। उसने फिर दूसरा खेल दिखाया, सामने रखी तीन साइकिल की घण्टीनुमा कटोरियों में से एक में लाल पत्थर की छोटी गोल गोटी रखता और दूसरी कटोरी से बड़ी चालाकी से वह गोटी निकालता। फिर यही क्रम वह दूसरी, फिर तीसरी कटोरी में छिपाता और निकलता। इस जादू से लोगों का अच्छा-ख़ासा मनोरंजन हो रहा था, पर सबके आकर्षण का केन्द्र था सांप और नेवले की लड़ाई, जो सपेरा कार्यक्रम के अंत में दिखाने वाला था। आख़िरकार वह घड़ी भी आ पहुंची।
“हाँ तो आज सांप या नेवले में से कोई एक बचेगा!” सपेरे ने बुलन्द आवाज़ में जो खेल शुरू होते वक़्त नेवले को खूंटी से बांधते हुए कहा था, उसे एक बार फिर से दोहराया। नेवला तो खूटी से बँधा था मगर सांप अभी पिटारे में बन्द था। जो भीड़ को रोके रखने का मुख्य कारण था। रह-रहकर सपेरा सांप और नेवले की पुरानी लड़ाइयों के क़िस्से भीड़ को सुनाकर उनमें जोश भर रहा था और युद्ध की सी भूमिका बना रहा था। सपेरे की कर्कश आवाज़ वातावरण में रणभेरी सी बजा रही थी।
“पिछली लड़ाई में तो नेवले ने सांप को जान से लगभग मार ही दिया था। वो तो मैंने अपना हाथ आगे किया तो नेवले ने सांप को छोड़कर मेरी अंगुली पकड़ ली।” सपेरे ने अपनी पट्टी बंधी हुई उंगली दिखते हुए कहा।
“अच्छा तो नेवले ने आपकी अंगुली कैसे छोड़ी अंकल?” सामने खड़े एक बच्चे ने अपने हाथ में खुजली करते हुए बड़ी मासूमियत से पूछा।
“मेरे सामने खुजली न करो बेटा, वरना मुझे भी खुजली होने लगती है।” सपेरे ने ऐसा कहा तो भीड़ हंस पड़ी। आगे सपेरे ने बताया, “मैं पिछली होली से नहीं नहाया।”
“पिछली होली से…?” बच्चा हैरानी से बोला।
“हाँ, लोग पता नहीं सालों-साल बिना नहाये कैसे रह जाते है? मुझे तो एक ही बरस में खुजली शुरू हो जाती है।” सपेरे के इस चुटकले पर कई लोग ठहाका मार कर हंसने लगे। इसके बाद बच्चे ने अपना प्रश्न फिर दोहराया कि, “उस रोज़ नेवले ने आपकी अंगुली कैसे छोड़ी?”
“मैंने नेवले से कहा, तेरे लिए मैंने एक सुन्दर-सी, प्यारी-सी ऐश्वर्या राय जैसी नेवली देखी है, अगर तू मेरी अंगुली छोड़ देगा तो मैं तेरी शादी उससे करवा दूंगा।” भीड़ ये सुनकर हँसी-ठहाका मारकर हंसने लगी और तालियाँ-सीटियाँ पीटने लगी।
“तो उसने अंगुली छोड़ दी।”
“नहीं।” सपेरा अपने थैले से एक फोटो निकालते हुए सबको दिखाने लगा। उसमे नेवले का फोटो था जिसपर सपेरे ने बड़ी चतुराई से नेवले के सर की जगह ऐश्वर्या राय का मुस्कुराता हुआ चेहरा लगाया हुआ था। वह बोला, “ये फोटो जब मैंने इस नेवले को दिखाया तो इसने मेरी अंगुली छोड़ी।” भीड़ पुनः हंसने लगी। इस बार अधिक उत्साह से तालियाँ-सीटियाँ बजने लगीं।
“अरे अब लड़ाई भी दिखाओगे या बातें ही बनाते रहोगे।” एक सज्जन जो समीप ही खड़े थे चिढ़कर बोले।
“लाला जी ज़रा थोड़ी और भीड़ तो जुट जाने दीजिये। थोड़ा धीरज रखें तमाशा तो आप लोगों के लिए ही लगाए हुए हूँ।” सपेरे ने कहा और पिटारे का मुँह खोल दिया, मगर सांप चुपचाप लेटा रहा।
“अबे तेरा सांप ज़िंदा भी है या यूँ ही मरे हुए सांप से पब्लिक को बेवकूफ़ बना रहा है।” एक दूसरे सज्जन भी अपना सब्र खोते हुए सपेरे पर बरस पड़े।
“अरे ज़िंदा है साहब। इस नाग की नागिन मायके गई हुई है इसलिए पिटारे में मरा हुआ-सा पड़ा है। ज़रा कान लगाकर सुनता हूँ कि आखिर ये चाहता क्या है?” इतना कहकर सपेरे ने पिटारे की तरफ अपना कान लगाया और पब्लिक से कहा, “भाइयों ये सांप कह रहा है कि कई दिनों से नागिन के विरहा में भूखा-प्यासा लेटा है। और कह रहा है तभी उठूंगा जब यहाँ खड़े दानी-दाता लोग हमारे खाने-पीने का कुछ इंतज़ाम कर दें। फ़ोकट में जान क्यों गावउँ?” इतना कहकर सपेरा अपना कटोरा लेकर भीड़ की तरफ़ घूम गया ये कहते हुए, “सांप को रोज़ एक लीटर दूध पिलाना पड़ता है। नेवले को फाइव स्टार होटल में खाना खिलाना पड़ता है।”
“और तू क्या खाता है?” एक नौजवान बोला।
“अपन का क्या है साहब, सूखी रोटी नमक के साथ खाता हूँ। 502 नंबर की बीड़ी पीता हूँ।” सपेरे ने बेहद मासूमियत के साथ कहा। आज वाकई में काफ़ी शौक़ीन आदमी मज़मा देख रहे थे। कटोरा काफ़ी हद तक भर गया था। सपेरा मन-ही-मन में खुश हुआ कि आज विलायती दारू और मटन-चिकन खाने का इंतज़ाम हो गया है।
“बहुत हो गया बकबक, अब खेल शुरू करो।” बग़ल में खड़े वही सज्जन पुनः बोले।
“हाँ, तो भाई-बहनों और बच्चों अब दिल थामकर देखिये सांप और नेवले की सदियों पुरानी लड़ाई।” कहकर सपेरे ने सांप के पिटारे के ऊपर बीन बजाई, लेकिन सांप पिटारे में पूर्व की भांति चुपचाप पड़ा रहा, “लगता है अभी भी नागिन के ग़म में डूबा है।”
“अबे सांप को निकाल पिटारे से बाहर।” बग़ल में खड़े वही सज्जन फिर सपेरे पर बरसे।
सपेरे ने सांप को खुद ही पिटारे से निकालकर नेवले के आगे फेंक दिया। एक-दो बच्चे और औरतें जो नेवले के सामने ही खड़ी थीं चिल्ला पड़ी। उनमें से एक बोली, “पागल सपेरा है क्या? हमें काट लेगा तो…” और दो कदम पीछे हो गए।
“सब दो-दो हाथ पीछे हो जाओ। बड़ी भयानक लड़ाई होने वाली है,” लेकिन सांप और नेवले ने लड़ने की जगह, एक-दूसरे की विपरीत दिशा में मुंह घुमा लिया। मानो आज न लड़ने की क़सम खा रखी हो।
“अभी देखिएगा साहब, जब मैं बीन बजाऊंगा तो दोनों आपस में कैसे लड़ेंगे!” और सपेरे ने सांप के सिर के ऊपर आकर बीन बजाई, मगर कोई फ़र्क़ न पड़ा। सांप नेवले के आगे निर्जीव पड़ा रहा। नेवला भी आक्रामक मूड में न दिखा और सपेरे के क़रीब आ जाने से वह भी अपनी जगह पर चुपचाप स्थिर बना रहा।
“अभी देखिएगा शान्त खड़े दोनों दुश्मन कैसे एक-दूसरे को मिटाने के लिए आपस में लड़ेंगे! क्यों मेरी मिट्टी ख़राब कर रहे हो दोनों!” अब सपेरा सांप और नेवले के सिर पर बीन बजाते हुए उन्हें लड़ाई के लिए उकसाने लगा। लेकिन दोनों अपनी-अपनी जगह स्थिर बने रहे। न सांप ने ही कोई प्रतिक्रिया दी और न ही नेवले ने। सपेरे ने अपनी पगड़ी एक ओर फेंकी और अपने बाल नोचने लगा।
“अबे कब से बेवकूफ़ बना रहा है। चलो भाइयों ये सपेरा सबका टाइम खोटा कर रहा है। कोई सांप नेवले की लड़ाई नहीं होने वाली यहाँ।” वही सज्जन बोले और भीड़ छटने लगी। पहले जो भीड़ तालियाँ और सीटियाँ बजा रही थी। वह अब तरह-तरह की गालियाँ सपेरे को दे रही थी।
“रुको-रुको, मैं प्रयास कर रहा हूँ।” सपेरे ने जाते हुए लोगों से आग्रह किया, मगर कोई न रुका और अब दो-चार बच्चे ही वहां खड़े थे।
“ये नेवले और सांप को आज ही जंगल में छोड़ दूंगा… मुझे नए सांप और नेवले का जोड़ा पकड़ना पड़ेगा। ये दोनों कई मज़मों में लड़ते-लड़ते थक गए हैं।” सपेरा खुद से ही बड़बड़ाया। ऊँची आवाज़ करके सामने खड़े दो-चार बच्चों से बोला, “शैतानों यहाँ खड़े-खड़े मेरी छाती पे क्यों मूंग दल रहे हो। भागो यहाँ से वरना तुम्हारे ऊपर सांप फेंक दूंगा।” इतना सुनकर वहां बचे हुए बच्चे भी भाग खड़े हुए। गली पुनः दुपहिया वाहनों के आवागमन के लिए चालू हो गई थी। सपेरा अपना सामान समेटने में व्यस्त हो गया।
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