अनूठा सपना
थी शीतल हवा और प्रकृति का बिछौना ।
थीं सुधियां अनेकों तरल मन का कोना ।
वो बचपन जवानी
के सपनो की गठरी ।
तनिक कड़ुवे अनुभव की
बातें भी पसरीं ।
सुबह फिर ले आई है आहट पुरानी ।
वो सपनो के राजा लजाती सी रानी ।
छुपी मिल रही है
अठन्नी- चवन्नी ।
कबूतर से बातें
मोहल्ले की मुन्नी ।
बड़ा ही अनूठा ये सपना दिखा था ।
वो चंदन सा बचपन अचानक मिला था ।
भले गाल आंसू से,
भीगे लगे है, ।
अमर हैं वो रिश्ते,
जो जीते मिले हैं ।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ