अनुराग
चहकते राम भागते जावें ,
मैया ज्यों पकरन को धावें
इधर-उधर पुलकित ,दौड आंगन में,
माइन को खेल खिलावैं ।..१
प्रभु जब दौड़ि आपु छांव को ,
कर सू पकरन चाहत हैं
चहक हंसत राजत द्वै दंतिया ,
दशरथ के मन भावत हैं ।..२
मात कौशल्या के उर संशय,
नहि कहु को यह भेद बतावैं
पकरि लाल दै काजर टीका ,
आँचरि ढांकि अनुराग बढ़ावैं ।..३
राम चहंहु निकसन आंचर से ,
भाइन कर संकेत बोलावैं
मात कौशल्या कर बंधन ढीले ,
उतिर अंक,पितु मात खिझावैं ।..४
राम दशा सुख निरखि मात-पितु,
हिय अनुराग बढ़ावत हैं
प्रभु पद पंकज की रज सिर धर,
सुर नर मुनि स्तुति गावत हैं ।..५