आत्मानुभूति
एक गांव में एक सेठ रहता था उसको एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रतिभा था। प्रतिभा नाम के अनुरूप प्रतिभावान चंचल समझदार और कार्यकुशल थी ।
एक दिन सेठ जी के यहां एक महात्मा पधारे उनके साथ कुछ लोग और भी थे ,
सेठ ने महात्मा का स्वागत सत्कार किया तथा पुत्री को सेवा में लगा दिया ।
जलपान और भोजन की व्यवस्था से महात्मा जी बहुत ही प्रसन्न हुए।
महात्मा जी ने नाम पूछा तो उसने जवाब दिया .. जी महाराज जी मेरा नाम प्रतिभा है सेठ की पुत्री ने विनम्रता से उत्तर दिया ।
अद्भुत यथा नाम तथा गुण,
पुत्री गुरुकुल जाती हो ?महात्मा ने पूछा
जी महाराज जी ! पर आज नहीं जा पायी हूं बापू अकेले थे ।अधिक कार्य पड़ जाने के कारण इनका ध्यान रखना पड़ता है…
प्रतिभा ने बड़े ही नम्र भाव से उत्तर दिया.. महात्मा ने पूछा अच्छा पुत्री एक प्रश्न का उत्तर दे सकोगी..
महाराज जी पूछिए हाथ जोड़कर प्रतिभा ने बड़ी शालीनता से कहा
” हंस था तो चल बसा,शुआ आम की डार।
मित्रों अब घर जाइए, कौवा काग सियार”।।
महात्मा ने प्रश्न पूछा….कहा इसका अर्थ बताओ ?
प्रतिभा कुछ देर सोचने के पश्चात बड़े ही विनम्र भाव में उत्तर दिया….
महाराज जी हंस का अर्थ जीवात्मा से है जो मृत्यु पर्यंत चली गई शुआ का अर्थ उस जीव का कर्म है जो यहां पर रह गया है और कौवा काग सियार का अर्थ उसके मित्र और सगे संबंधियों से है ..
महात्मा बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देकर चले गए सेठ की आंखों में खुशी के आंसू उतर आए पुत्री के सिर पर स्नेह से हाथ रखा और कहा.. तुम्हें पुत्री रूप में पाकर मैं धन्य हो गया ।
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य ..✍️