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21 Mar 2020 · 1 min read

अनुरागी मन

‘अनुरागी मन’ (गीत)

देख तरंगित लहरों को मैं कितनी बार मचलता हूँ,
बैठ किनारे सागर के मैं खुद से बातें करता हूँ।

विरह-वेदना अंतस छाई प्यार न तेरा पाऊँ मैं,
मरु की तपती उजड़ी भू पर जल की आस लगाऊँ मैं।
अवसादित मन की पीड़ा को आज गीत में लिखता हूँ,
बैठ किनारे सागर के मैं खुद से बातें करता हूँ।

अनुरागी मन के मधुरिम पल ऐसे मुझसे रूँठ गए,
ऊषा की लाली में जैसे स्वर्णिम सपने टूट गए।
सन्नाटा मीलों तक छाया एक आसरा तकता हूँ,
बैठ किनारे सागर के मैं खुद से बातें करता हूँ।

भीतर-बाहर तिमिर समाया दीप जलाने आ जाओ,
अवशेष बचे इस जीवन में आभास दिलाने आ जाओ।
लक्ष्यहीन को राह दिखाओ बेसुध पग में धरता हूँ,
बैठ किनारे सागर के मैं खुद से बातें करता हूँ।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 409 Views
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