अनुभूति
अजीब सी बेख्याली में
उस रात बहुत देर
बेचैनियों के शोरगुल में
नींद दुबकी ही रही ।
थक गई जब आँख जगकर
आवाज दी अनमने मन को
और समझाया उसे यूँ,
कल सुबह फिर वक्त से
करनी होगी गुफ्तगू,
इसलिए अब शान्त हो
किस्सो को सब विराम दो ।
समझ उसकी बात मन ने
फिर रूख तेरे मन को किया
प्रेम विह्वल शब्द फूटे
अब नही परेशान हो
सो जाओ, ताकि मैं सो सकूं ।
कल फिर वही जद्दोजहद है ।
मेरे इतना बोलते ही
पूरी रात की बेचैनी सिमट गई ।
नींद ने अपनी जगह घेर ली
अन्ततः मैं सो गई।
सुबह उठने पर
तुम्हारे मन से हुआ ये वार्तालाप
मुझे विस्मित कर गया ।
क्या वास्तव में तुम्हारा मन
इतना स्पष्ट मुझे सुन पाता है ?
एक सुखद आश्चर्य,
दिनों बाद इतनी सुखद अनुभूति
मेरे मन मस्तिष्क को
सुकून दे तृप्त कर गयी ।
तुम्हारा मुझसे दूर होकर भी
इतनी समीपता का अहसास
तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम, ममत्व
विश्वास और भी दृढ़ कर गया ।