अनुभूति
अनुभूति
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तुम कभी की जा चुकी थी…पर इन कमबख़्त होठों से आज भी ‘पलट’ शब्द ही निकलते हैं!इन बद्तमीज आँखों का क्या करूँ,जो आज भी राह तकती रहती हैं कि तुम आओगी इक दिन!!इन उद्दंड कानों को कितना मरोड़ूँ,जो आज भी सुनती रहती हैं…तुम्हारे पदचाप को!!इस बेशर्म नाक का क्या ईलाज करूँ,जो आज भी तुम्हारे बालों में गूँथे हुए जूही के फूलों के गजरे की मदहोश गंध को दूर से ही पहचान लेते हैं!!
ये सब इतने मासूम और भोले हैं न कि क्या कहूँ!!मैंने सौ दफा समझाया है उन्हें और मनाया भी है।पर बचपना जाता ही नहीं उनका!!और इस नन्हें से कोमल हृदय की धड़कनों को कैसे बहलाऊँ जो 24×7 बस तुम्हारा ही नाम लेते हैं!!
मेरी बात नहीं सुनते ये सब!सब उच्छृंखल हो गये हैं।उन्हें क्या पता कि तुम लौटकर भी मुझे आखिर क्या दे जाओगी??जो मेरा था तुम्हारे अंदर,उसे तो तुमने कब का बाहर निकाल दिया।पर जो तुम्हारा,मेरे अंदर छूट गया है… उसकी ख़बर तो लेती जाओ!मैंंने तुमसे तुमको चुराकर बड़ी हिफ़ाज़त से रखा है।
तुम बस एक बार आकर इन्हें बता जाओ कि अच्छे बच्चे बदमाशी नहीं करते,जिद्द भी नहीं करते।शर्तिया कहता हूँ वे सब तुम्हारी बात मान लेंगे।शायद इसलिए कि मैं उन्हें वह प्यार नहीं दे सका अब तक,जो तुम दे सकती हो!मैंने तो अपनी पौरुषता के दंभ में उन्हें डाँटा है,फटकारा है केवल!!अब मैं कर भी क्या सकता था।मानते नहीं हैं तो गुस्सा तो आ ही जाता है।…और तुम तो जानती हो कि मैं बहुत गुस्सैल हूँ।
बोलो ना,आओगी न मेरी…???मैं तुम्हारा इंतज़ार अंतिम साँस तक करूँगा!!
© डॉ.कुमार अनुभव