Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Jun 2023 · 3 min read

अनुभव

// अनुभव //
मनोज दसवीं कक्षा में पढ़ता था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ वह खेलकूद में भी बहुत तेज था। वार्षिक परीक्षा समाप्त हो चुकी थी । उसके सभी पर्चे अच्छे हुए थे। इसलिए वह निश्चिन्त था। उसने निश्चय किया कि वह गर्मी की छुट्टियों में अपने पापा जी के साथ उनकी दुकान पर बैठेगा ताकि उसे कुछ अनुभव भी हो और समय भी कटे।
उसके पिता जी की शहर के सदर बाजार में किराने की दुकान थी। वे अपनी सहायता व सुविधा के लिए एक नौकर भी रखते थे। वे अक्सर मनोज से अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने को कहा करते थे। वे अभी से उसमें दुकानदारी का मोह पलने नहीं देना चाहते थे।
रात को भोजन के समय मनोज ने पापा जी से छुट्टियों में दुकान पर बैठने की बात कही।
‘‘मनोज बेटे, अभी आपको पढ़ाई की तरफ ध्यान देनी चाहिए। दुकानदारी के लिए तो सारी उमर पड़ी है।’’ पापा जी ने समझाया।
मनोज कुछ कहता उससे पहले ही उसकी मम्मी ने घुसपैठ कर दी- ‘‘मान भी जाइए ना, बस छुट्टियों में ही तो बैठने की बात है। कुछ सीख भी लेगा ताकि आवश्यकता पड़ने पर काम आ सके।’’
‘‘ठीक है, आप लोगों की यही इच्छा है तो कल से ही दुकान पर चलने के लिए तैयार हो जाओ।’’ पापा जी ने हथियार डाल दिए। मनोज का मन खुशी से झूम उठा।
अब मनोज अपने पापाजी एवं नौकर के साथ दुकान पर बैठने लगा। धीरे-धीरे उसे भी चीजों के नापतौल, भाव आदि याद हो गए। वह ग्राहकों को सामान तौलकर देता और हिसाब कर उनसे रुपये ले लेता। धीरे-धीरे उसकी लगन, मेहनत और ग्राहकों के प्रति उसके व्यवहार से पापा जी भी आश्वस्त हो गए।
दो माह कब बीत गए, उसे पता ही नहीं चला। इस बीच उसका परीक्षा परिणाम भी निकल गया। वह प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ था।
एक दिन दुकान से घर आते समय उसके पिताजी की मोटर सायकल को एक ट्रक ने ठोकर मार दी। उन्हें कुछ लोगों ने अस्पताल पहुँचाया। उन्हें कई जगह गंभीर चोटें लगी थी, सो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
मनोज और उसकी मम्मी बारी-बारी से उनके साथ अस्पताल में रहते। इस बीच उनकी सारी जमा पूँजी दवा-दारू तथा डाॅक्टरों की फीस में भेेंट चढ़ गई। दस दिन बाद उन्हें अस्पताल से तो छुट्टी मिल गई, पर मनोज के पिता जी पूर्ण स्वस्थ नहीं हो पाए थे। डाॅक्टरो ने उन्हें कम्पलीट बेडरेस्ट की सलाह दी थी।
मनोज ने सोचा ऐसे तो काम नहीं चलेगा। कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। एक्सीडेण्ट के बाद से दुकान बंद थी, क्योंकि सिर्फ नौकर के भरोसे दुकान नहीं छोड़ा जा सकता था। उसने मम्मी से बात की कि वह स्कूल समय के अलावा बचे समय में सुबह-शाम कुछ देर नौकर के साथ दुकान पर बैठेगा, ताकि कुछ आमदनी हो और ग्राहक भी न टूटें। मम्मी पहले तो कुछ झिझकीं पर बाद में मनोज के जोर देने पर “हाँ” कर दी।
अब मनोज नौकर के साथ दुकान पर बैठने लगा। दुकान पहले की तरह चलने लगी।
कुछ ही दिनोें में मनोज के पिता जी भी पूर्ण स्वस्थ हो गए। इस प्रकार मनोज की दुकानदारी का अनुभव समय पर काम आया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
1 Like · 180 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Dr Arun Kumar Shastri
Dr Arun Kumar Shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
इंतिज़ार
इंतिज़ार
Shyam Sundar Subramanian
दोहे- शक्ति
दोहे- शक्ति
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
भैया दूज (हिंदी गजल/गीतिका)
भैया दूज (हिंदी गजल/गीतिका)
Ravi Prakash
फ़ितरत
फ़ितरत
Manisha Manjari
गुज़रते वक्त ने
गुज़रते वक्त ने
Dr fauzia Naseem shad
राम
राम
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सावन के झूलें कहे, मन है बड़ा उदास ।
सावन के झूलें कहे, मन है बड़ा उदास ।
रेखा कापसे
वेलेंटाइन डे बिना विवाह के सुहागरात के समान है।
वेलेंटाइन डे बिना विवाह के सुहागरात के समान है।
Rj Anand Prajapati
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
ऐसे नाराज़ अगर, होने लगोगे तुम हमसे
gurudeenverma198
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
💐प्रेम कौतुक-268💐
💐प्रेम कौतुक-268💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
■ सावधान...
■ सावधान...
*Author प्रणय प्रभात*
सच सोच ऊंची उड़ान की हो
सच सोच ऊंची उड़ान की हो
Neeraj Agarwal
मन मेरे तू सावन सा बन....
मन मेरे तू सावन सा बन....
डॉ.सीमा अग्रवाल
लोककवि रामचरन गुप्त मनस्वी साहित्यकार +डॉ. अभिनेष शर्मा
लोककवि रामचरन गुप्त मनस्वी साहित्यकार +डॉ. अभिनेष शर्मा
कवि रमेशराज
स्पर्श
स्पर्श
Ajay Mishra
परिवार के लिए
परिवार के लिए
Dr. Pradeep Kumar Sharma
कभी नहीं है हारा मन (गीतिका)
कभी नहीं है हारा मन (गीतिका)
surenderpal vaidya
गुजर जाती है उम्र, उम्र रिश्ते बनाने में
गुजर जाती है उम्र, उम्र रिश्ते बनाने में
Ram Krishan Rastogi
प्रकृति प्रेमी
प्रकृति प्रेमी
Ankita Patel
I am Me - Redefined
I am Me - Redefined
Dhriti Mishra
3031.*पूर्णिका*
3031.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तुम अभी आना नहीं।
तुम अभी आना नहीं।
Taj Mohammad
"प्रेम सपन सलोना सा"
Dr. Kishan tandon kranti
क्या हक़ीक़त है ,क्या फ़साना है
क्या हक़ीक़त है ,क्या फ़साना है
पूर्वार्थ
मिलकर नज़रें निगाह से लूट लेतीं है आँखें
मिलकर नज़रें निगाह से लूट लेतीं है आँखें
Amit Pandey
जिस सनातन छत्र ने, किया दुष्टों को माप
जिस सनातन छत्र ने, किया दुष्टों को माप
Vishnu Prasad 'panchotiya'
“देवभूमि क दिव्य दर्शन” मैथिली ( यात्रा -संस्मरण )
“देवभूमि क दिव्य दर्शन” मैथिली ( यात्रा -संस्मरण )
DrLakshman Jha Parimal
Loading...