अनुबंधित पीर
पीहर में अनुबंधित पीर।
अनायुध
मन मेरा देता है बार–बार चीर।
तुलसी के चौरे पर
काल–खण्ड काँपता विरह का।
अनुमोदित पाहुन का
गँध लिए आता समीर।
पी घर में अनुरंजित पागल शरीर।
अनाकार अनुप्रासिक नृत्य से
देता है खींच ही
मिलन का अनुषंगिक
भाजित लकीर।
संध्या की देहरी पर
गोधूलि गाता है
फागुन के गीत।
अनुद्वेगित तन मेरा
साजन के मन जैसा
होता प्रतीत।