अनुप्रास अलंकार से प्रेरित दोहे -रस्तोगी
तरनी तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये
मोदी मुलायम ममता माया मुद्रा पर छाये
मंदिर मस्जिद मसला मन मन में मंडराये
मुस्लिम मन मोदी मुद्दे को मन से सुलझाये
म से मंदिर,म से मस्जिद,म से मन की बात
मन का मनका मारके, करो मन की अब बात
मंदिर में भी मै हूँ,मस्जिद में भी मै हूँ
फिर क्यों है हिन्दू मुस्लिमो में मुटाव
इससे तो बच्चन की मधुशाला अच्छी
जहा बिलकुल नहीं होता मन मुटाव
म से मंदिर,म से मस्जिद, म से मन क्यों काला
मन से मन को धोय रे,ओर करो मत काला
मन का मुटाव छोडिये,मन को लियो मिलाय
ये मन की बात है,मन को जरा दियो समझाय
म से माँ बनी ,उसके मन में कितना दुलार
माँ के मन को खोजिये हो जायेगा बेडा पार
माँ में ममता है भरी,ममता बिन सब बेकार
माँ का आशीर्वाद लीजिये,मिलेगा सुख अपार
माँ से बड़ा कोई नहीं,जिसने दिखया तुम्हे संसार
उसका ऋण न चूका पाओगे,चाहे जन्म लो सौ बार
पिता भी पूज्यनीय है वह भी है तुम्हारा पालनहार
पिता को पूरा सम्मान दोगे तो हो जायेगा बेडा पार
मात पिता की पूजा करो सब पूजा है दिखावा मात्र
उनकी पूजा करके तो देखो,भाग्य खुल जायेगे पात्र
आर के रस्तोगी