अनुग्रह माँ अम्बे की
अनुग्रह माँ अम्बे की………
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एक मासूम सा चेहरा किन्तु दीर्घकालिक दुख से स्याह पड़ा, हुआ आखो से अश्रु की अविरल धारा बहकर जैसे सुख चुकी हो किन्तु अपना निशान बनाकर गई हो, इन अश्कों के पीछे एक बहुत ही सुन्दर , मर्यादित, संस्कारित छवि दृश्य हो रही थी।
वैसे मैं एक कर्मकाण्डी पंडित हूँ ….और मेरे कर्मानुसार किसी नवयवना को निहारना व उसके रूप लावण्य का इस बारीकी से वर्णन करना शायद अनुचित हो किन्तु ……..इस जगह की मांग व उसके आशुओं से लबरेज़ स्याह पड़े चेहरे ने मुझे ऐसा विचलित किया …….कि मैं मंत्रोच्चारण भुल कर उसके तरफ उसके दुखो की थाह लेने को उद्यत हुये बीना न रह सका।
मैं उस कन्या से मुखातिब हुआ और पुछ बैठा ……क्या बात है देवी क्यो इतना अधिर दिख रही हो, ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे उपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। बताओ देवी ….. क्या कष्ट है तुम्हें?
ईश्वर के दरबार में हर तरह के लोगों का आगमन होता है कई तरह की मांगें होती हैं लेकिन अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अरदास हर एक इंसान एक सम सहजता के साथ नहीं रख पाता।
जहाँ तक हमारी अनुभव जाती है हमने देखा है जो जितना बड़ा दुखिया हो ईश्वर के समक्ष कुछ भी कह पाने में उतना ही असहज होता है , खुद को भगवन के सम्मुख प्रस्तुत कर पाने में सर्वथा असहाय महसूस करता है।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस इंसान को आभास हो कि आज जो कोई भी कष्ट उसे है उसका उत्तरदायी वो खुद है। किन्तु फिर भी ईश्वर समदर्शी है, दयालु है, कृपालु है, वह सबको एक सम समझता है , सबको जानता है , यथासंभव वह सबके कष्टों का निवारण भी करता है।
उस युवती ने रूधे गले से कहा……… गुरुदेव मेरी दशा बहुत ही नाजुक है, दुखों ने तो जैसे मेरे घर पे ही आश्रय ले रखा है।
मैने पुछाः- …..देवी जो भी कष्ट है तुझे सविस्तार बताओ माँ अम्बे अवश्य ही तुम्हारे दुखों का निवारण करेगी।
युवती बोली…….गुरवर मेरी शादी को दस वर्ष हो चले है किन्तु आज भी मेरी कोख सुनी है कई डॉक्टरो से दिखाया गया, कई मंदिरों के चक्कर काटे, घर पे पूजा-पाठ , जाप यज्ञ करवाया परन्तु परीणाम आज भी शुन्य ही है ।
अब तो हमारे ससुराल में मेरे पति की दुसरी शादी की बात भी यदा कदा होने लगी है , घर में सभी मुझसे दूरब्यवहार करने लगे है एक नौकरानी जैसी स्थिति हो गई है मेरी। …..समझ नही आ रहा मै कहाँ जाऊं क्या करूँ? ……कभी कभी तो मृत्यु का आवरण करने को जी करता है।
ईश्वर दयालु तो है, कृपालु भी है किन्तु वह भी तब सहायक होता है जब प्राणी नीरीह भाव से खुद को उसे सौप दे जब तक सम्पूर्णता के साथ समर्पण भाव प्रदर्शित ना हो हरि कृपा कदापि नहीं होती। ……..शायद ईश्वर भी अपने भक्तों का कठिन परीक्षा लेता है
पता नहीं किन्तु माँ अम्बे के दरबार में शायद उसके दुखों का वर्णन करने व माँ को प्रशन्न कर उनके निवारण का माध्यम मुझे माँ ने बनाना था …. मेरे उपर माँ अम्बे की ये अति विशिष्ट कृपा थी .।
माँ का खोईछा भरा जा चूका था मैं अपने आसन से उठा और माँ के चरणों मे नत्मस्तक हो उस देवी के कष्टों के निवार्णार्थ प्रार्थना कर माँ के खोईछा से एक चूटकी जीरा उनके चरणों से दो साबुत फल लाकर उस युवती को दिया और बोला……
जाओ बेटी इसे खा लेना और माँ के प्रति सच्ची श्रद्धा रखना ।
माँ ने चाहा तो अगले नवरात्रि में पुत्ररत्न के साथ आना।
एक वर्ष उपरांत इस नवराते वह युवती सपरिवार माँ के दर्शन को आई गोद में एक या दो माह के शिशु को लिए हुये।
शिशु को मेरे गोद में रखकर रूआंसी होकर बोली…गुरवर आपके आशीर्वाद का यह प्रताप है
मैने तो खुद से कई मंदिरों के खाक छाने किन्तु सुफल प्राप्त नहीं हुआ परन्तु आपके द्वारा किए गये प्रार्थना को माँ ने सुना और मेरा खोया संसार मुझे वापस मिल गया।
मेरी नजरें अनायास ही माँ की ओर मुड़ी ….. नीरीह भाव से मैंने माँ को देखा और मन ही मन प्रार्थना की….हे माँ तू बड़ी दयालु है मेरे जैसे तुक्ष इंसान को तुने किसी के खुशियों का माध्यम बनाकर जो सम्मान बक्सा है इस अनुग्रह के लिए तुझे कोटि-कोटि नमन है माँ।
माँ की महिमा अपरमपार है वो जब जिसे चाहे अपने अनुग्रह से महान बना दे, महानता की प्राकाष्ठा वो खुद है किन्तु अपने कृपा का श्रेय स्वयं न ले कर अपने भक्तों को देती है।
हे माँ तेरी सदा ही जय हो।।…………..।।
………..पं.संजीव शुक्ल “सचिन”