अनाम मोहब्बत
drarunkumarshastri … एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
कुछ् खत मोहब्बत के
अब भी मेरे पास
तरतीब से सहेजे हुये …..
तेरी पहचान लिये
तेरे मेरे सानिध्य के
जिंदा उन्मान लिये
बीत रहा हुं पल पल
ढलता हुआ जीवन
मगर विश्वास से भरा
तेरे आने का एहसास लिये
कुछ खत मोहब्बत के
अब भी मेरे पास
तरतीब से सहेजे हुये ……
युं तो इस मोहब्बत ने
अनेको को सताया है
तिल तिल जलाया है
पल पल रुलाया है
भटकते को घर दिया
घर से किसी को बेघर किया
नेमतो से भर दिया किसी को
और किसी को जिंदा
द्फनाया है
कुछ खत मोहब्बत के
अब भी मेरे पास
तरतीब से सहेजे हुये …….