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3 Dec 2016 · 1 min read

अनाम पल

लघुकथा
अनाम पल

*अनिल शूर आज़ाद

वह चौंक उठा!
सचमुच उसका अपना ही चित्र था जो ट्रेन के दरवाज़े के साथ बैठी उस नवयुवती के मोबाइल-स्क्रीन पर चमक रहा था। वह एक नामी लेखक है, जरूर वह उसकी कोई फैन होगी।
सहसा वह रोमांच से भर उठा!..अब वह कोई फ़ेसबुक-संदेश ‘शायद..उसी के वास्ते’ टाइप कर रही थी! दूरी के बावजूद प्रयासपूर्वक थोड़े-बहुत शब्द वह, पढ़ भी पा रहा था। दरवाज़े के ओट में खड़े उसे एक सुंदर हाथ..तथा उसमें पकड़ा मोबाइल ही बस दिखाई दे रहा था।
उसका मन हुआ कि सामने आकर उससे कहे कि ‘जिस अविनाश को आप सन्देश भेज रही हो, वह सामने उपस्थित है।’ या फिर.. जरा आगे बढ़कर कम-स-कम उसका चेहरा ही देख ले। पर नही..बलात उसने स्वयं को रोक लिया। उस भली औरत के निजी पलों में झांकने की गुस्ताख़ी तो वह कर ही चुका था। अब सरेराह उसे तथा स्वयं को यों बेपर्दा करना..उसे गवारा न हुआ।
गाड़ी.. फिर धीमी हो रही थी। उसका स्टेशन आ गया था। बिना अपनी अनाम मित्र का चेहरा देखे..वह प्लेटफार्म पर उतर गया।

Language: Hindi
229 Views
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