अनाम अपूर्ण
पहली बार ऐसा हुआ कि
मैंने अपना लिखा शेर मिटा डाला,
पहली बार ऐसा हुआ कि,
मैंने पन्ना-पन्ना भिगा डाला।
कुछ ग़जलें, कुछ गीत
कुछ शेर, कुछ शायरी
मैंने लिखते-लिखते थाम ली कलम
न पहली पंक्ति,
न आखिरी चार विराम
बस यों ही अधूरी
कविताऐं कहानियां क्षणिकाऐं
आपस में जोड़ ली।
और इस तुष्टीकरण का,
इस अनाप संधि का
जो ग्रंथ बन पाया हाथ में
वो मैं खुद हूँ
अप्रकाशित, अमुद्रित
किन्तु यथास्थिति
वितरित बिखरित
छिन्न-भिन्न अपूर्ण अनाम।
-✍श्रीधर.