अनामिका
जाने कब? क्यूँ? कहां?
कैसे ? यह हो गया,
आपकी मुस्कान देख,
दिल निहाल हो गया।
स्वर्णिम लावण्य जिसमें,
चाॅदी सी दंत पंक्ति,
सांवली सूरत देख,
दिल निहाल हो गया।
ग्रीष्म में वर्षा सरीखी,
शरद ॠतु में धूप सी,
पतझड़ में बसंती देख,
दिल निहाल हो गया।
चाॅदनी रातों में लिपटी,
तारिका सी तुम कोई,
झिलमिलाती झलक देख,
दिल निहाल हो गया।
हम न पूछेंगे कभी,
तुम कौन हो? क्या नाम है?
तुम को दिल के पास देख,
दिल निहाल हो गया।
✍️ – सुनील सुमन