अनर्गल_बात…
अनर्गल_बात…
अभी कल परसों की ही बात है। लॉकडाउन को 50 – 55 दिन हो चुके शायद मैंने गिनना छोड़ दिया है।
सुबह का वक़्त था बालकनी में खड़ी थी तभी छोटी बहन चाय पकड़ा गई। चाय हाथ में ले अभी पीने के लिए उठाया ही था कि एक आवाज से चौंक गई। हाथ मानों जम गया हो और होठ खुले के खुले रह गए। और आंख कान दोनों नीचे ठेला खींचती महिला पे पड़ी, जो सब्जी बेच रही थी। एक हाथ में सब्जी ठेला का ठेलने वाला मुठ और दूसरे में लगभग सात आठ महीने का बच्चा।
दोनों आवाज़ लगा रहे थे। औरत – “सब्जी ले लो… टमाटर, प्याज, तोरई, शिमला मिर्च ले लो।
बच्चा – म म् म मां का स्वर कोरस के जैसे निकाल रहा था।
मैं दूसरी मंजिल के टेरिस से ये सब देखते हुए मानों जम गई थी।
थोड़ी देर बाद तंद्रा टूटी तो देखा चाय ठंडी हो चुकी थी। और वो, सब्जी तोल रही थी। बच्चा अपने कोमल आवाज़ में पुर्वत गा रहा था।
मैं भी नीचे गई, कुछ देर उन दोनों को देखती रही कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।
सब्जी वाली के ठेले से जब अन्य ग्राहक रवाना हो गए तो उस ने मुझ से मुखातिब हो पूछा ‘मेम साब क्या लोगे ? सब्जी ताजा है।”
मेरे मुंह से अचानक निकल गया “क्यूं कर रही हो ऎसा? घर में रहना चाहिए था। बच्चा छोटा है, बीमार पड़ गया तो? और जानती नहीं बन्दी है… सरकार सब को घर में ही रहने को बोली है”
उस ने भी तपाक जवाब दिया – “सरकार को पेट नहीं होता शायद, होता भी होगा तो सरकार पेट से बच्चा न जनता होगा, नहीं तो जरूर जानता अपना पेट तो भूखा रख सकते हैं। बच्चे के पेट को दाना पानी चाहिए ही चाहिए। न मिले तो समझ लो किसी को काटना ही पडेगा।”
मैंने भी जोर देते हुए कहा.. “तुम पागल हो सरकार राशन तो दे रही है न”
उसने भी तपाक जवाब दिया – “हां जिनका कारड बना है उनको, हम बिहार से आए थे अभी छै महीने पहले, कार्ड वाराड नहीं बना है।और तुमको कोन बोला मेम साहब, की सबही को मिल रहा है राशन? साला सब फर्जी बात है। और तुम अनर्गल बात करना बन्द करो। सब्जी लेना है तो लो नहीं तो जिरह न फाड़ो”
मैं बिना कुछ बोले धीरे धीरे कदमों से वापस आ गई “अनर्गल बात न करो” बुदबुदाते हुए…
समाप्त
~ सिद्धार्थ