अनमोल
तेरे आस पास होने से ही जी उठती हूं मैं
सोच मेरे कितने अंदर जाकर बैठा है तू
और किसको मैंने इतना टूट के चाहा है
मेरे सांसों के रेशमी धागे में जा बैठा है तू
~ सिद्धार्थ
तेरे आस पास होने से ही जी उठती हूं मैं
सोच मेरे कितने अंदर जाकर बैठा है तू
और किसको मैंने इतना टूट के चाहा है
मेरे सांसों के रेशमी धागे में जा बैठा है तू
~ सिद्धार्थ