Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jul 2021 · 7 min read

अनमोल हीरा

★अनमोल हीरा★

कोयले की खान में एक हीरा ऐसे ही पड़ा हुआ था जैसे कूड़ेदान में सोने की गिन्नी पड़ी हो। खान में काम करने वाले मजदूर क्या जाने हीरा कैसा होता है। उनको हीरा-मोती से क्या मतलब! कभी देखा भी तो नही था। केवल नाम ही सुना था कि हीरा एक बहुमूल्य रत्न होता है। फिर उनका हीरे से क्या लेना देना? उनका काम तो कोयले की खुदाई करना और अपने कार्य में मनोयोग से लगे रहना था। जो उनकी नियति भी थी। सो बड़े उत्साह से खान में कोयले की खुदाई करते रहते। मजदूरों के लिए तो उनकी मेहनत ही सबसे बहुमूल्य रत्न थी। उन्होने कभी हीरा के दर्शन भी नही किये थे। उनके मन में यही धारणा थी कि हीरा जवाहारात तो राजा-महाराजों के पास होते हैं। हमारे पास हीरा कहाँ से आ सकता है। इसलिए उस हीरे को पारदर्शी पत्थर का टुकड़ा समझ सब ठुकराते रहे। कोई फावड़े से उसे इधर फेंक देता तो कोई गेतीं से उधर हटा देता। हाथों से उठाना तो दूर कोई भी उसे कोयला ऊपर खींचने वाली ट्राली में भी नही डालता। सब उसे पैरों से ही यहाँ-वहाँ ठुकराते रहते। हीरा उन सब की ठोकरे खाता हुआ अपने भाग्य को कोसता रहता।

दुःख, चिन्ता और तिरस्कार के कारण उसकी आभा धूमिल हो गयी थी। वह अपने विधाता से बार बार यही प्रार्थना किया करता कि हे, प्रभू!, मुझे उबार लो, मुझे ऊपर पहुँचा दो, यदि तू मुझ पर छोड़ी सी ‘कृपा’ कर दे तो मेरा भाग्य चमक उठे। मैं इस अंधेरी गर्त गुफा में निस्तेज होकर कब तक ऐसे ही अनुपयोगी रूप में पड़ा रहूंगा और फिर मेरे उत्पन्न होने का उद्देश्य ही क्या होगा? उसको ऊपर उठाने के लिए केवल इतने से सहयोग की जरूरत थी कि कोई अपना समझकर अपने पास रख ले या उसको कोयला ले जाने वाली ट्राली में डाल दे। स्वयं के विकास के लिए हीरा दिनरात प्रयत्न करते हुए संघर्षरत रहता, किन्तु उसकी दैनिक प्रार्थनाएं व्यर्थ ही चली जाती।

किसी भी मजदूर को उसे हाथों से छूने की फुरसत नही थी। क्योंकि जहाँ वह पड़ा था वहाँ उपयोगिता केवल कोयले की मानी जाती। कोयला ही उनके लिए सबसे अधिक महत्व रखता क्योंकि कोयले की कमाई के द्वारा ही उन सब का पेट पल रहा। इसलिए बहुमूल्य होकर भी हीरे की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। हीरा कोयले की अपेक्षा अधिक कठोर होता है, कोयले की अपेक्षा उसे धारण करने में अधिक सामर्थ, सुरक्षा और अनुशासन की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए भी लोग हीरा को समझने व रखने का सामर्थ उत्पन्न करने से कतराते हैं। लोगों का कोयले के साथ जीवन भले ही निम्न स्तर का कृष्णकाय हो पर जीना आसान लगता है। ऊपर उठकर श्वेत होने में कष्ट है, संघर्ष है। हीरा की प्रवत्ति ही श्वेत होकर प्रकाश को परिवर्तित कर चमकने की है। इसलिए अपने अंधकारमय काले भाग्य को कोसते हुए दैयनीय स्थिति से गुजर कर रहा था और अपने दुर्भाग्य के दिन काटता रहा। कभी कभी इस काले अंधकार की बेचैनी से उसका हृदय कराहते हुए मन ही मन कह उठता-

अभी तो पड़ा हूँ जमीं में,
जिन्दगी का सहारा बनकर
खुल के चमकूंगा किसी दिन,
इस जहां में सितारा बनकर।

इसी धैर्य और आशा के साथ के वहाँ उपस्थित व्यक्तियों की ठोकरे खाते हुए उसका समय कट रहा था।

एक दिन हीरे की खान के अन्दर एक नया चमकता हुआ चेहरा दिखाई पड़ा। वह श्रमिक नवयुवक अपने पिता के स्थान पर काम करने आया था। क्योंकि उसके पिता अपने मालिक के लिए श्रमदान करते हुए शरीर को हड्डियों का पिंजरा बनाकर अवकाश प्राप्त कर जीवनदान देने के अधिकारी हो गये थे। पुराने श्रमिकों को कोई काम करने में कोई शीघ्रता नहीं थी क्योंकि प्रतिदिन वही काम करते करते उनका उत्साह ठंडा पड़ गया था। उनका जीवन ही ‘काम’ बन गया था। उस युवक में अभी अभी नवीन जीवन ऊर्जा का स्फुटन शुरू हुआ था। काले शरीर में उस स्फुटित ऊर्जा की चमक देखी जा सकती थी। वह उत्साह से भरा था। इस समय वह अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से बड़ा और कठोर कार्य कारने का सामर्थ रखता था। कोयले की खान में उसका पहला दिन था। अन्य मजदूरों के सामने स्वयं के सामर्थ को प्रदर्शित करने के लिए वह बड़े उत्साह एवं तेजी के साथ कोयला ट्राली में भर रहा था। इसी प्रकार प्रकृति के लगभग प्रत्येक घटक में स्वयं को प्रदर्शित करने की क्षमता प्रकृति ने स्वयं ही प्रदान की है और वह स्वयं को संसार में प्रदर्शित करना चाहता है।

बेचारा हीरा कोयले के टुकड़े में आधे से अधिक फंसा हुआ लाचार नजरों से उस नवयुवक श्रमिक की ओर टकटकी लगाकर देख रहा था। मानो कह रहा हो, हे मित्र! तू ही मुझे अपना ले या उठा कर उस ट्राली में डाल दे। यदि तू अपनाता है तो मेरे भाग्य के साथ तेरा भी भाग्य चमक उठेगा, तेरी दरिद्रता को तो मैं कोशों दूर कर दूँगा। तू सुख और ऐश्वर्य का परम भोग करेगा। पर अज्ञानता के कारण हीरे की बात उस यूवक के कानों तक नहीं पहुंची। उसने हीरे की तरफ केवल एक ही नजर देखा और उस कोने की सफाई करने के उद्देश्य से कुठ बुदबुदाते हुए हीरा को काँच का टुकड़ा समझ कर कोयले के साथ हीरा की तरफ दांये पैर के रबड़ के जूते का सहारा लेकर बेलचा से उठाकर ट्राली में डाल दिया।

ट्राली में पहुंचते ही हीरे का हृदय गद्गद होकर कृतज्ञता से भर गया। उसके मन में प्रसन्ता की कोई सीमा रही। मन ही मन उस यूवक को और अपने विधाता को भी धन्यवाद देने लगा। आखिर उसने प्रार्थना सुन ही ली। हीरा के मन में उथलपुथल चल ही रही थी कि जैसे किसी को उसकी खुशी देखी नही गयी। दूसरे श्रमिकों ने उसके ऊपर कोयला लादकर दबा दिया। संसार में लोगों की यही एक विषेशता है कि किसी की निश्चल प्रसन्नता किसी दूसरे को आँख में कंकड़ जैसी चुभती है। लगभग हर एक, दूसरे की प्रसन्नता को दबा देना चाहता है।

खैर हीरे की खुशी तो कोयला ऊपर गिरने के कारण बन्द हो गयी। पर इससे उसे अधिक दुःख नही हुआ। क्योंकि उसके मन में उन र्निदयी श्रमिकों की ठोकरों से बच कर ऊपर उठने की खुशी अभी भी शेष थी। ज्यों-ज्यों ट्राली ऊपर उठती जाती हीरे की प्रसन्ता बढ़ती जाती, ट्राली ऊपर पहुंचते ही श्रमिक उसे खाली करने में जुट गये ।

किन्तु यह क्या…? जिस कोयले के टुकड़े में हीरा फसा हुआ था संयोग से उस टुकड़े को एक श्रमिक ने उठाकर रास्ते पर यों ही फेक दिया। ठोस जमीन पर गिरने के कारण हीरा उस कोयले के टुकड़े से अलग हो गया। वह दूर पड़ा दर्द से कराहने लगा, पर यही कोयला का टुकड़ा ही तो उसके तिरस्कार और पतन का कारण बना हुआ था। हीरा तो स्वयं में पूर्ण हीरा ही था किन्तु कोयले के टुकड़े में फंसे होने के कारण संसार के लिए न तो उसका कोई मोल था और न ही उसकी कोई उपयोगिता किसी को दर्शाती थी। तभी तो सब उसे ठुकराते और तिरस्कृत करते रहे। विधाता की उस पर दया थी किन्तु वह भी उसके भाग्य से खेलते हुए उसके धैर्य और सामर्थ की परीक्षा ले रहा था। वह कोयले के टुकड़े से अलग होकर पथ की धूल में बुरी तरह फंस गया।

बरसात का मौसम आया, बहुत जोरों से बारिश हुई। हीरा अपने अन्दर धैर्य को आश्रय देते हुए अपने विश्वास से कभी विचलित नही हुआ। वह सर्दी, गर्मी बारिश आदि प्राकृतिक कष्टों को परम धैर्य के साथ सहता हुआ पड़ा रहा। क्योंकि उसके मन में अपने प्रभु की कृपा के प्रति पूर्ण श्रद्धा थी और कष्टों से उबरने की आशा भी थी कि एक न एक दिन वह समाज के सामने पूरी तरह चमकेगा। यही दृण विश्वास तो संघर्षो से लड़ने में सहयता करता रहा।

एक दिन खान के मालिक की कार उसी स्थान पर कीचड़ के कारण फंस गयी। श्रमिक, नौकर कार को धक्का मार कर निकालने लगे। वह दूर खड़ा होकर कार निकलने की प्रतिक्षा करने लगा। संयोग से वह जौहरी भी था। अचानक उसकी नजर उस कीचड़ से सने हुए हीरे पर पड़ गयी। उसने तुरन्त हीरे को उठा कर इधर-उधर पलट कर पारखी नजरों से निरीक्षण किया एवं अपने कीमती रुमाल से कीचड़ पोंछकर साफ किया। इतना बड़ा हीरा पाकर थोड़ी देर के लिए जौहरी ने अपना सुध-बुध खो दिया। हीरे को हृदय से लगाते हुए मन ही मन कहने लगा, अरे मेरे लाल! तू यहाँ क्यों…क्यों पड़ा था? चल तुझे अपने घर पर सबसे उच्च और पवित्र स्थान पर रखेगें, तेरी पूजा करेगें, तेरी पूरी देखभाल हम स्वयं करेगे, तूने कष्ट सहे हैं!, जौहरी हीरे से वही विचित्र मूक भाषा में बात कर रहा तब तक कार कीचड़ से बाहर निकल चुकी थी।

घर आकर उसने हीरे को तुरन्त गंगा जल से नहला कर पवित्र किया। अधिक चमकाने और बहुमूल्य बनाने के उद्देश्य से उसने हीरे को हर कोण से तराछना सुरु कर दिया। जौहरी ने हीरे को तराछ-तराछ कर परिपक्व और पूर्ण चमकदार बना दिया। अब क्या था जो भी हीरे को देखता मुह मांगी कीमत देने को तैयार हो जाता और हीरा लेने को दौड़ पड़ता। उसकी कीमत बढ़ती गयी। लोग उस हीरे को अपने पास रखने के लिए लालायित होने लगे थे। धीरे-धीरे उस हीरे को दुनिंया के सबसे अच्छे हीरे मे आंका जाने लगा।

©”अमित”

12 Likes · 51 Comments · 2937 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कुछ परिंदें।
कुछ परिंदें।
Taj Mohammad
4377.*पूर्णिका*
4377.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नयी उमंगें
नयी उमंगें
surenderpal vaidya
दोपहर जल रही है सड़कों पर
दोपहर जल रही है सड़कों पर
Shweta Soni
"सर्व धर्म समभाव"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
हिंदी का अपमान
हिंदी का अपमान
Shriyansh Gupta
वीर-जवान
वीर-जवान
लक्ष्मी सिंह
4) “एक और मौक़ा”
4) “एक और मौक़ा”
Sapna Arora
*झंडा (बाल कविता)*
*झंडा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
कुछ पल
कुछ पल
Mahender Singh
राख देह की पांव पसारे
राख देह की पांव पसारे
Suryakant Dwivedi
जीवन यात्रा
जीवन यात्रा
विजय कुमार अग्रवाल
हम भी बहुत अजीब हैं, अजीब थे, अजीब रहेंगे,
हम भी बहुत अजीब हैं, अजीब थे, अजीब रहेंगे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
गज़ल
गज़ल
करन ''केसरा''
कुछ तो बाक़ी
कुछ तो बाक़ी
Dr fauzia Naseem shad
न मुझको दग़ा देना
न मुझको दग़ा देना
Monika Arora
अपनी भूल स्वीकार करें वो
अपनी भूल स्वीकार करें वो
gurudeenverma198
बदनाम ये आवारा जबीं हमसे हुई है
बदनाम ये आवारा जबीं हमसे हुई है
Sarfaraz Ahmed Aasee
इस शहर में कितने लोग मिले कुछ पता नही
इस शहर में कितने लोग मिले कुछ पता नही
पूर्वार्थ
,,,,,,,,,,?
,,,,,,,,,,?
शेखर सिंह
ध
*प्रणय*
ये बता दे तू किधर जाएंगे।
ये बता दे तू किधर जाएंगे।
सत्य कुमार प्रेमी
कृष्ण जन्माष्टमी
कृष्ण जन्माष्टमी
रुपेश कुमार
"अग्निस्नान"
Dr. Kishan tandon kranti
नदी की मुस्कान
नदी की मुस्कान
Satish Srijan
वृक्षारोपण कीजिए
वृक्षारोपण कीजिए
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
Piyush Goel
बंधन
बंधन
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमा
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमा
Rituraj shivem verma
दोहा पंचक. . . . प्रेम
दोहा पंचक. . . . प्रेम
sushil sarna
Loading...