अनमोल रिश्ता
धरा और गगन सम प्रीती हो
सागर की गहराई से गहरी रीति हो
प्रेम और विश्वास से भरी जिंदगी हो
जीवन राह पर चाहे कितनी कठिन विपत्ति हो
मोम सा यह बंधन सजीला
ना कोई रहे यहां बनकर हठीला
वीणा के तारों सा यह मधुर अहसास
हर मोड़ पर बढ़ता जाएं विश्वास
जो कभी आए मन में अहम की भावना
झाड़कर वहीं दुर लेना हर व्यवधान
छा जाएं कभीअन्तर्मन में उदासी
कुसुम से मांग लाना तुम हंसी
नभ में जैसे दिनकर की लालिमा बिखरती
फैली हो सफलता हर क्षेत्र में कीर्ति
जीवन की राह पर साथ चलना
है नहीं इतना मुश्किल भी जीना
बनकर उम्मीद की किरण आए हो
जीने का बनकर आवरण छाए हो
ना थककर रूकना कभी यहाँ
सारथी बनकर चलना सदा