अनमोल माँ
मेरी माँ है जग से न्यारी,
हम को जाँ से प्यारी है।
देव् तुल्य है देवी माँ जो ,
हम को धरा उतारी है।।
रात रात भर जगकर के वह
हम को सदा सुलाती है।
खुद भूखी रहकर के भी
माँ पुत्र को दूध पिलाती है।
आँख में आंसू तेरे हो तो
माँ भी अश्रु बहाती है।
कदम कदम पर थाम हाथ
माँ जीना हमें सिखाती है।।
पथरीले राहो पर चलकर
माँ फूल में हमें चलाती है।
शिक्षा,दीक्षा कर्त्तव्य बोध
जग में माँ से ही आती है।।
माँ के है उपकार बहुत ही
कितना भला बखान करू।
सागर है मेरी माँ जग में
कूप हूं मैं क्या मान करू।
माँ तूने मुझे जहान दिया
मैं और भला अब क्या चाहू।
मै दास हूं तेरे चरणों का
भगवान् के गुण कितना गाऊ।
कृतिकार
सनी गुप्ता मदन
9721059895
अम्बेडकरनगर यूपी