अनमोल जीवन
तोड़ कर गुलाब किसी के बाग़ का अपना गुलशन महकाया तो क्या किया
बुझा कर चिराग किसी के घर का अपना महल जगमगाया तो क्या किया
लूट के दौलत किसी अन्य तिजोरी की अपना ओहदा बढाने से क्या फायदा
बहा के लहू किसी निर्दोष निरपराध का अपना प्रतिशोध लेने से क्या फायदा
लूट के आबरू किसी बेटी-बहन की अपनी विकृत मानसिकता का परिचय दिया
तबाह करके जीवन किसी असहाय का अपने अहंकार को पोषित किया
इतना अनमोल जीवन पाकर इसे बेमोल,बेकार गंवाकर यह तूने क्या किया
तू बन सकता था बहुमूल्य बेजोड़ रत्न खोटा सिक्का ही बन पाया तो क्या किया
जिसने इस मर्म को जाना अपना मोल पहचाना बस वही सफल रहा
अकेले रहकर भी उसने सारे जहाँ को है रोशन किया |