अनमोल जीवन
अनमोल दरिया पर बने पुल से छलांग लगाने ही वाला था कि किसी ने उसे अपनी तरफ खींच लिया। वह पुल की रेलिंग से नीचे सड़क पर आ गिरा।
‘अरे भाई! कौन हो तुम? छो… छोड़ो मुझे…मुझे मर जाने दो…।’
अनमोल ने उस हट्ठे-कट्ठे व्यक्ति से अपना हाँथ छुड़ाने का यथा सम्भव प्रयास किया पर असफल रहा।
‘अरे यार! तुम बुजदिल हो क्या कि जान देने पर उतारू हो?’ उस व्यक्ति ने अनमोल को अपनी तरफ खींचते हुए चिल्ला कर कहा।
‘अरे भाई! तुम अपना रास्ता नापो! जान न पहचान मैं तेरा मेहमान, छोड़ो…छोड़ो मुझे… तुम कुछ भी कर लो मेरा मरना निश्चित है।’
बहुत प्रयास के बाद भी अनमोल उस व्यक्ति की पकड़ से आजाद नहीं हो पाया।
‘लाओ अपना मोबाइल दो, मैं तेरे घरवालों को यहीं बुलाता हूँ और पूछता हूँ कि माजरा क्या है?’
‘मोबाइल नहीं है उसे अभी अभी मैंने दरिया में फेंक दिया, अब मुझे भी कूद जाने दो!’ अनमोल ने पुनः उस व्यक्ति की पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए कहा।
‘भाई! जिद छोड़ो और मेरे साथ आराम से मेरे घर चलो, अपनी समस्या बताओं। हम मिल बैठ कर समाधान करते हैं।
अनमोल गिड़गिड़ाने लगा पर वह व्यक्ति जिसका नाम गौरव था नहीं माना।
‘भाई! मैं तुम्हें जानता नहीं और तुम मुझे जानते नहीं! फिर क्यों मेरे पीछे पड़े हो? किस नाते से बचाना चाहते हो?’
‘इंसानियत के नाते से। हर इंसान को एक दूसरे के सुख दुख में शरीक होना चाहिए। एक गाना तो तुमने सुना ही होगा- “आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ…!” इसी विचारधारा का व्यक्ति हूँ मैं। और सुनो! तुम मुझे गौरव कह सकते हो। मेरा घर यहाँ से कुछ ही दूरी पर है। मैं एक रिक्शा चालक हूँ। देखो वो रहा मेरा रिक्शा!’
गौरव की बातों में आकर्षण था। काफी देर समझाने के बाद अनमोल का मन कुछ शांत हुआ। फिर दोनों गौरव के घर की ओर चल दिये।
‘भाई! रहते कहाँ हो? नाम क्या है?’
‘मैं अनमोल हूँ यहीं से पाँच छै किलोमीटर आगे नौगावां में रहता हूँ।’
‘घर में कोई परेशानी है क्या जो इतने निराश हो?’
‘दरअसल मेरी नौकरी चली गयी है। नई नौकरी या काम की तलाश में भटक रहा हूँ। नौकरी थी उसी दौरान मैंने लोन लेकर जमीन खरीद ली जिसका क़िस्त अब नहीं चुका पा रहा हूँ। बच्चों को शहर के सबसे महँगे स्कूल में एडमिशन करवाया था, लेकिन वहाँ से अब नाम कटने की नौबत आ गयी है। बच्चे कुछ बोलते नहीं पर उनकी निराशा देखी नहीं जाती। माता-पिता का सही से इलाज करवाना संभव नहीं हो पा रहा है। मेरा परिवार कभी फोर व्हीलर से चलता था लेकिन अब मोटरसाइकिल का पेट्रोल भी भारी लगता है। गैस सिलिंडर नहीं भरवा पाने के कारण पत्नी का मुँह धुँआ धुँआ सा रहता है। जीवन स्तर ऊँचा था तो समाज में बड़ी प्रतिष्ठा थी, पर अब कोई नहीं पूछता। मेरे रिश्तेदार और मित्र यहाँ तक कि घरवाले भी हेय दृष्टि से देखते हैं। मुझे सिर पर बिठाने वाले अब पैरों की धूल भी नहीं समझते। हालांकि अपने गाँव के बगल के चौराहे पर फल बेचकर किसी तरह चार पाँच सौ रुपये कमा लेता हूँ लेकिन इतने से परिवार की मूल जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती। सबको अच्छा भोजन, महँगे कपड़े, ऐशोआराम और ऊँचा स्टेटस चाहिए। ये सब चीजें जब पूरी नहीं होती तो घर में बहुत कलह होता है। घर की यही बात जब बाहर के लोग सुनते हैं तो अड़ोस-पड़ोस में मुँह दिखाना कठिन हो जाता है। इतने वर्षों से परिवार को पाल रहा हूँ लेकिन किसी ने प्रशंसा के एक शब्द नहीं कहे। आज मजबूरी वश परिवार की एक छोटी सी डिमांड पूरी नहीं हुई तो पत्नी ने यहाँ तक कह दिया कि “आपका होना या न होना हमारे लिए बराबर है”। मुझे लगा कि जब मेरी जरूरत ही किसी को नहीं है तो जीने से क्या लाभ! गौरव अगर आज तुम नहीं आये होते तो मेरी इस अथाह पीड़ा का अंत हो गया होता!’
अनमोल की आँखों से आँसू टपकने लगे। गौरव ने उसकी पीठ पर हाँथ रखते हुए कहा।
‘बस इतनी सी बात के लिए तुम आत्महत्या करने चले थे! बड़े कमजोर दिल के आदमी हो यार! दुनिया में लोगों के पास इतना दुख है कि यदि वे सभी लोग आत्महत्या करने लग जाएं तो मानव सभ्यता ही समाप्त हो जाय। मैं रिक्शा चलाने का काम करता हूँ लेकिन मेरी यह वास्तविकता जानकर तुमको हैरानी होगी कि मैंने एम ए तक पढ़ाई की है। मेरे पिता कुश्ती के बहुत बड़े खिलाड़ी थे। पूरे गाँव नगर में मेरे परिवार की बहुत इज़्ज़त थी। जब बुरे दिन शुरू हुए तो मजबूरन मुझे यह काम करना पड़ा। मेरे घर के हालात इस समय तुमसे भी बुरे हैं लेकिन फिर भी मैं हँसी खुशी सुखमय जीवन बिता रहा हूँ।’ वो देखो! एक झुग्गी की ओर इशारा करते हुए गौरव ने फिर कहा- ‘देखो, कैसे उसकी झुग्गी में पूरा पानी घुसा हुआ है और उसमें रहने वाला परिवार सड़क पर समय बिताने को मजबूर है। मेरा रोज का इधर से आना जाना है ये लोग आवश्यताओं की पूर्ति नहीं होने पर रोज लड़ाई करते हैं लेकिन आपसी प्रेम भी इन लोगों में उतना ही है। समाज द्वारा इन्हें रोज अपमानित किया जाता है परंतु ये तुम्हारी तरह निराश नहीं होते। इस दुनिया में कौन दुखी नहीं है! किसी के पास दौलत है तो संतान नहीं। किसी के पास संतान तो है पर अच्छी परवरिश के लिए धन नहीं। किसी के पास सबकुछ है तो अच्छा स्वास्थ्य नहीं। कोई बीवी से परेशान है तो कोई पति से। कोई बेटे-बेटियों के बर्ताव से दुखी है तो कोई माता-पिता को ही दोषी करार दे देता है। कोई विकलांगता से दुखी है तो कोई बुढ़ापे से। कोई बेहद गरीब होकर दुखी है, तो वहीं कोई अमीर इसलिए दुखी है कि कहीं उसकी संपत्ति न चली जाय। कोई किसी से बिछड़कर दुखी है तो कोई किसी के मर जाने से। दरअसल यह दुनिया ही दुखों से भरी हुई है इसका मतलब यह नहीं कि हम जीना ही छोड़ दें। हमें चाहिए कि भूत भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान में रहते हुए आनंद पूर्वक जीवन जियें। आप पहली प्राथमिकता अपने जीवन को दीजिए व दूसरी प्राथमिकता अपने परिवार को, शेष को आखिर में रखिये। सच मानिए आप हैं तभी आपका घर-परिवार है, मित्र, रिश्तेदार हैं, या यूँ कहें कि पूरी दुनिया है। आपके लिए आपके सम्पूर्ण संसार की आधारशिला आपका जीवन ही है। इसलिए जो अपना जीवन नष्ट करते हैं दरअसल वे अपना सबकुछ नष्ट कर देते हैं।’
बातों बातों में गौरव ने अनमोल को तुम से आप कहना शुरू कर दिया था। वार्तालाप का क्रम अभी और चलता तबतक गौरव का घर आ गया। दोनों रिक्शे से उतरे। अनमोल गौरव के पैरों पर गिर गया।
‘मुझे मालूम नहीं था आप इतने विद्वान व्यक्ति हैं। मुझे दुख है कि मैं आपको अबतक तुम तुम कहता रहा। आपने अपने दिव्य ज्ञान से मेरी आँखें खोल दीं। मेरा जीवन बचाने के लिए मैं आपका आजीवन आभारी रहूँगा।’ गौरव ने अनमोल को सीने से लगा लिया और घर के अंदर लेकर गया।
‘अनमोल जी! आभार व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके काम आ सका।’ गौरव ने अनमोल को बैठने का इशारा करते हुए कहा। दोनों बैठकर चाय नाश्ता करने लगे।
‘गौरव जी! मैं अपनी मोटर साइकिल दुकान पर ही छोड़ कर इधर बस से आ गया था। कृपया मुझे मेरी दुकान तक छोड़ दीजिए और जरा मेरे घर फोन भी कर दीजिए शायद सब लोग परेशान हो रहे होंगे।’
गौरव ने अनमोल को अपना मोबाइल दे दिया। अनमोल ने पत्नी को फोन किया।
‘हेलो! मैं बोल रहा हूँ।’
‘कहाँ हैं आप? हम सब लोग चिंतित हो रहे हैं, आप रोज अबतक तक घर आ जाते थे। आज क्या हुआ जो इतना विलम्ब हो रहा है, और आपका मोबाइल क्यों स्विच ऑफ बता रहा है?
‘मोबाइल कहीं खो गया है इसलिए, लेकिन मैं आ रहा हूँ।’
‘लेकिन मैं आ रहा हूँ…, इसका क्या मतलब है? आप किसी मुसीबत में थे क्या?’
‘अरे नहीं! मैं तो बहुत जल्दी में था…, पर एक मित्र ने मुझे रोक लिया। आ रहा हूँ… चिंता न करो।’
कहानीकार- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 07/06/2022