अनमोल जल
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अनमोल जल
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नीर निर्मल नहीं सुरसरी का रहा ।
गंद सारा नदी में रहे हैं बहा ।।
मात यमुना कराहे विषैली हुई ।
हाय रे ! हर नदी आज मैली हुई ।।
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गंद डालो नदी में नहीं जान के ।
देखिये तो कभी कूल पर आन के ।।
जल विषैला हुआ स्याह मसि-सा बना ।
क्या इसी के लिये मात ने था जना ?
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जल मिले यदि नहीं क्या पियोगे कहो ?
जिंदगी जल बिना क्या जियोगे कहो ?
और दोहन अधिक मत धरा का करो ।
जिंदगी से नहीं मौत से तो डरो ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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