‘अनमोल खुशी’
‘अनमोल खुशी’
करवा चौथ का त्योहार था। सभी सुहागिन स्त्रियाँ सज धजकर चाँद की प्रतीक्षा में आतुर थीं। विचित्रा ने भी आज सुर्ख लाल जोड़ा पहना हुआ था।शादी को अभी छः महीने ही तो हुए थे पहली करवा चौथ थी उसकी। सास -सुसुर की छाती फटी जा रही थी बहू को इस रूप में देखकर।अभी पिछले ही हफ्ते तो उनके बेटे की शहीद होने की सूचना मिली थी।लाश तक घर नहीं पहुंच पाई थी बेटे की। पर विचित्रा थी कि मानने को तैयार ही नहीं थी कि कीर्ति अब इस दुनिया में नहीं है। ग्लेशियर के बरफीले तूफान की भेंट चढ़ गया था। उसने वादा किया था कि पहली करवा चौथ पर वह अवश्य विचित्रा से मिलने आएगा। दो महीने से उससे घरवालों की कोई बात-चीत भी नहीं हो पाई थी। एक हफ्ता पहले ही तार आया था कीर्ति के लापता होने का। बहुत कोशिश के बाद भी कीर्ति का कुछ पता नहीं चल पाया था।
विजय सिंह के दो ही बेटे थे जो सालों बाद अनेक पूजा पाठ के बाद उनको प्राप्त हुए थे। ईश्वर की कृपा दृष्टि से उनको एक साथ दो जुड़वां बेटे हुए थे। कीर्ती और पुनीत नाम था उनका। रंग रूप और शक्ल सूरत से हू बहू समान थे। पहचान करने के लिए मां एक के माथे पर तो एक के गर्दन पर पर काला टीका लगाती थी और अलग – अलग बजर बट्टू हाथों में पहनाती थी।
धीरे धीरे बच्चे बढ़े हो गए पढ़ने में भी दोनों एक जैसे नंबर लाते थे। दोनों को देश सेवा से प्रेम था।एक पुलिस में जाना चाहता था तो एक सेना में । दोंनो को पुलिस और सेना की वर्दी का बहुत शौक भी था।कभी-कभी तो वे आपस में वर्दी बदलकर घर वालों को असमंजस में डाल देते थे कि किसका नाम क्या है।
बड़ा बेटा फौज में चला गया था और छोटा बेटा पुलिस में भर्ती हो गया था। यूँ तो दोनों में बस पाँच मिनट का ही अंतर था। बड़े बेटे को सियाचिन की चोटी पर रक्षा की जिम्मेदारी मिली थी।हाल में ही उसका तबादला हुआ था। पर किस्मत में कुछ और ही लिखा था। अचानक बरफीले तूफान की चपेट में कई जवान बर्फ की चट्टानों में दब गए थे ।कुछ को तो निकाल लिया गया पर कुछ का पता नहीं चल पाया था। काफी दिन खोजने के बाद उन्हें मृत मान लिया गया। उनमें से एक कीर्ती भी था। विजय सिंह छोटे बेटे को सूचना देने की हिम्मत जुटा ही रहे थे कि बहू तो पूरे सुहागिन बनकर करवा चौथ की तैयारी में थी। आज वो सोच रहे थे कि कैसे समझाएँ बहू को । चाँद निकलने ही वाला था ।विचित्रा सुबह से भूखी प्यासी कीर्ती की प्रतीक्षा में थी।
कब आएगा उसका पति? सास-ससुर ने जैसे-तैसे उसे जल देने के लिए मना लिया था। ताकि वो जल और भोजन ग्रहण कर सके।
विचित्रा जल देने ही वाली थी कि तभी अचानक से आंगन में फौजी वर्दी में छलनी में कोई छाया उसकी ओर आ रही थी। वो जोर से चिल्ला पड़ी, “माँ बाबू जी देखो ! कीर्ती ने अपना वादा पूरा कर लिया। वो खुशी से आने वाले से लिपट गई ।माँ बाबू जी हक्के-बक्के रह गए। उनके मुख से आवाज नहीं निकल पा रही थी । वो बात को भाँप गए थे।उन्होंने इशारे से पुनीत को चुप रहने के लिए कहा। वो विचित्रा की खुशी को बिखरने नहीं देना चाहते थे। व्रत खुलवाने के बाद माँ-बाबू जी ने बेटे को सारी दुःख भरी कहानी कह सुनाई। और उसे कीर्ती नाम से ही पुकारने लगे। कुछ दिन बाद पुनीत को आतंकियों के हाथों अपने ही मारे जाने की सूचना विचित्रा को सुनानी पड़ी । धीरे-धीरे पुनीत ने भी विचित्रा को स्वीकार कर लिया था। कुछ समय बाद विजय सिंह और उसकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया। मरते हुए उन्होंने पुनीत से वचन ले लिया था कि वो ये राज विचित्रा को कभी नहीं बताएगा ।विचित्रा की खुशी के लिए पुनीत ने वो दुखद राज़ अपने सीने में हमेशा के लिए दफ़न कर दिया था।
स्वरचित और मौलिक
Godambari negi pundir