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20 May 2020 · 1 min read

अनमेल के साथ

अनमेल के साथ कब तक रहोगे ।
सूरज को यूँ चाँद कब तक कहोगे ।।

जो चाहो किनारा , टकराना पड़ेगा ।
धाराओं के साथ कब तक बहोगे ।।

यदि फूल हो तुम तो कांटों के संग में ।
मिलेंगे तुम्हें जख्म कब तक सहोगे ।।

हवाओं के विपरीत गर थम न पाए ।
तो सूखे दरख्तों से कब तक ढहोगे ।।

प्रतिकूलताओं से भयभीत होंगे ।
तो अनुकूलताओं को कब तक गहोगे ।।

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