अनपढ़
” मुन्नी देख तो साहब नहा कर आये की नही । ”
” मेमसाब आप रोज़ रसोईं में खड़ी होकर साहब के तैयार होने का इंतजार करती हैं कि कब वो तैयार हो कर आयें और आप एकदम गरम नाश्ता परोसें । ”
” गरम नाश्ते की बात ही अलग होती है मुन्नी । ”
” मेमसाब लेकिन साहब तो तैयार होकर भी बहुत देर तक फोन पर बात करते हैं और आप गरम नाश्ता देने का इंतज़ार करती हैं…. इत्ती पढ़ी – लिखी हो कर भी । ”
” बहुत बोलने लगी है आजकल तू चल अपना काम निपटा…तू पढ़ी – लिखी नही है ना । ”
” अभी तक नाश्ता बना नही क्या रश्मि ? मनोज ने पूछा । ”
” जी बस तैयार है ठंडा ना हो जाये इसलिए आपका इंतज़ार कर रही थी । ”
” तुम खाना क्या देती हो जैसे एहसान करती हो मेरे पास तुम्हारे खाने के इंतज़ार के अलावा हजारों काम रहते हैं…ले दे कर एक काम करती हो वो भी ढ़ंग से नही कर पाती । ”
मुन्नी को अपना रिक्शा चलाने वाला पति याद आ गया कितने प्यार से घर में भी उसका हाथ बंटाता हैं और उसको काम करने बाहर भी भेजता है ।
” अच्छा है जो मैं अनपढ़ हूॅं नही तो रोज मेमसाब की तरह डांट खाती… बड़बड़ाती हुई काम करने लगी । ”
अब तो उसे अपने पति पर और ज्यादा ही प्यार आ रहा था ।
आज रात हम दोनों मिलकर मुर्गा पकायेंगे ये सोचते हुए उसके हाथ तेजी से काम करने लगे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 26/12/2021 )