अनन्त प्रश्न
जीवन ज्योति जलाने वाले
जीवन ज्योति बुझाता क्यों है।
जीवन को मुस्काने वाले
दुख के बादल लाता क्यों है।
प्यासे मन का अमृत बन कर
तूने तृप्त किया तन तन को।
बना दुपहरी की तू छाया
शीतलता से पोसा मन को।
मन की आस जगाने वाले
मन की आस बुझाता क्यों है।
जीवन को महकाने वाले
जीवन को मुरझाता क्यों है।
बना गीत यह मेरा जीवन
तूने जब संगीत सुनाया।
हुआ शांत यह थका हुआ मन
तूने जब मनमीत बनाया।
फिर जा कर ओझल हो बैठा
बार बार बहकाता क्यों है।
प्यासे का पानी है फिर भी
जीवन प्यास बढ़ाता क्यों है।
तूने की देदीप्त दिशाएं
आँखों में उम्मीद जगाई।
तपी तपी सी मरूभूमि में
पग पग ज्यों हरियाली छाई।
फिर क्यों भ्रमित किया राहों पर
मृगतृष्णा फैलाता क्यों है।
पास है पर तू दूरी का
अहसास कराता क्यों है।
विपिन