अनजान सफर
“जा री चंदू ड़ी। सब्ज़ी मंडी में से साग बीन कर ला। हाथ पैरों में जंग लगा है क्या चल उठ।”
छगनी ने चंदा को दुत्कारा। आज कोई नयी बात नहीं। यह तो रोज़ का नियम है सौतेली माँ छगनी से फटकार खाना। इसके बिना तो जैसे चंदा का दिन ही पूरा न हो। डाँट खाकर दुखी मन से वह सब्ज़ी मंडी की ओर चल पड़ी। वह वहाँ जाना न चाहती थी, कारण था कालू की घृणित निगाहें और जीभ को होंठों पर फिरा- फिरा कर कुटिल मुस्कान बिखेरना। कितना असहनीय होता है सब कुछ उसके लिए। और उस दिन तो गजब……
वह जमीन न पर गिरी सब्जियां समेट रही थी कि पीछे से किसी ने कलाई पकड़ ली।
पीछे मुड़ कर देखा तो कालू खींसे निपोरते हुए हँस रहा था। बोला-“” क्यों मारी- मारी फिरती है चंदा रानी। मुझसे रोजाना यूँ ही ताजा सब्जी ले जाया कर। एक बार आ तो सही मेरी दुकान पर।”
पर यह सब दुख वह कहे किससे…….
उस छगनी से जो सौतेली माता के रूप में उसे तनिक भी पसन्द नहीं करती।
या अपने बापू दीन्या से जो पहली पत्नी के मरते ही सात दिन के भीतर दूसरी औरत ले आया। बेटी को तो उसी दिन से भूल चुका था वह।
माँ बहुत याद आ रही थी उसे। अकेले में आंसुओं से भीगे चेहरे को पोंछकर झट उठ खड़ी हुई वह। कहीं नयी माँ ने देख भर लिया फिर तो रात को बापू से ठुकवाएगी।
आज याद आ रही हैं उसे कनु दी।
एक बार आई थीं अपनी टीम के साथ शहर से। पाठशाला में उन्होंने कहा था कि इसलिए न घबराएँ कि वे लड़की हैं। माँ दुर्गा भी एक लड़की थीं। लड़कियाँ शक्ति का स्वरूप होती हैं। यदि अपने भीतर यह शक्ति महसूस करोगी तो कोई मानव रूपी असुर तुम्हारे रोंएं को भी नहीं छू सकता। हम लड़कियों को कभी हताश नहीं होना चाहिए। यदि कोई बच्ची चाहे अपना दुख हम से कह कर हमारी मदद भी ले सकती है और तो हमारी शक्ति टीम के लिए काम भी कर सकती है।
…… और चंदा ने दुर्गा का रूप ले कर आज शक्ति टीम का हिस्सा बनने के लिए कदम बढ़ा दिए एक अनजान सफर की ओर।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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