अनचाहे अपराध व प्रायश्चित
अनचाहे अपराध व प्रायश्चित
अत्यंत मृदुल भाषी सीधा सादा जीवन में,भी कभी कभी अनचाहे अपराध हो जाता है।
एक घटना मेरे जीवन में प्रत्यक्षदर्शी बनकर अनुभव किया।
एक परिवार में घर बंटवारा हुआ,पंच परमेश्वर गांव के पंचों द्वारा पुर्ण पार दर्शिता से बराबर बंटवारा कर दिया गया था,पर बड़े
भाई के द्वारा दबंगई दिखाते हुए अपने छोटे भाई के हिस्सों से ,भी कुछ जमीन हड़प लिया जाता है,छोटा भाई शांत स्वभाव से कुछ नहीं बोला जाता , पुनः दूसरे तीसरे बार वही कार्य किया जाता है ,तब असहनीय हो गया, फिर छोटु उनके विरूद्ध आवाज उठाता,बड़ा भाई वंही पर रखा पत्थर से पहले वार कर दिया गया पर छोटु बच गया
गुस्से में आकर उसी पत्थर से अपने बड़े भाई के ऊपर वा कर दिया गया,बड़कू का मृत्यु हो गई,छोटु को जेल हुआ,कुछ समय बाद जेल से छुट गया ,गांव में आकर रहने लगा।
उनके जेल से छुटने के बाद कुछ पत्रकारों ने उनसे सम्पर्क किया और पूछा कैसे भाई अब ठीक तो हो,
छोटु का जवाब आया, नहीं आदरणीय,मैं शासन के जेल से जरूर छुट गया पर अपने हृदय के जेल से छुट्टी नहीं मिल पा रहा है।
हर वक्त वह घटना मेरे हृदय को ताना दे रहा है कि नाशवान जिंदगी में एक छोटी सी जमीन के वास्ते भाई का हत्या,मेरी जिंदगी में मैने क्या कर डाला, कलंकित जीवन जी रहा हूं,बस यही सोच सोचकर समय ब्यतीत कर रहा हूं मुझे अत्यन्त पश्चतावा और प्रायश्चित करना पड़ रहा है।
इस प्रकार हरके जीवन में अनचाहे कुछ अपराध हो जाता है,और प्रायश्चित से बढ़कर कोई सजा नहीं है, आत्मग्लानि, पश्याताप, पश्चतावा होने पर व्यक्ति पुनः वह गलती कभी नहीं दोहराता, इंसान हैं इंसान को सुधरने का अवसर अवश्य ही देना चाहिए।
लेखक
डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर
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