*”अनकही”*
“अनकही”
कुछ कही अनकही बातें जो अधूरे ही रह गए।
ढूंढते रहे शब्दों में चेहरा केभावों में बहकते गए।
इतना करीब होकर इधर उधर उलझते रह गए। तन्हाइयों में अकेले ही मन को समझाते गए।
अकेलापन उन खामोश लफ्जों को पढ़ते गए।
आंखों की आंसुओं की कीमत क्या रोते बिलखते दिन कटते गए।
अनकही बातों चाहतों की दरकार ,लबो पे थिरकते रह गए।
लबो पे आते हुई बातें ,डरी सहमी हुई सी थम ही गए।
अनमोल रिश्तों के साथ जो प्रीत बंधी , धीरज बंधा वो भी छूट गए।
वो प्यारा सा बंधन तेरा दीदार करती, अनकही बातें बिना कहे ही रह गए।
जय श्री कृष्णा राधे राधे
शशिकला व्यास✍