अनकहा सा कुछ
सोचता हूँ अक्सर
कि तेरे और मेरे बीच
जोअलग सा है
उसे एक नाम
दे डालूँ,
एक अलग सी
परिभाषा
शब्दों के बेतुके
जोड़तोड़ से परे
जो एक रिश्ता
शुरू होता है
मैंने खींच रखी
हैं दो चार रेखाएं
परिधि को मापने के लिये
कि जुड़ कर उनका विस्तार
कुछ कह पाए
और जो कुछ भी अलग सा है
बंध जाए दायरों के बीच
पर उन रेखाओ के बीच
और उनसे परे तक
अनगिनत असीमित
बिंदुओं की एक सृंखला है
जिसने अपरिभाषित होकर भी
बांध रखी है दूरियां इन रेखाओं की
नंगी आंखों का गणितीय पक्ष
इन रेखाओं तक ही सीमित हो जाता है
और उन सूक्ष्म बिंदुओं को
जो इस अनकहे से कुछ का
आधार और साक्षी भी
शायद ही समझ पाता है
रहने दो अपने इस स्वप्निल से कुछ को
अपरिभाषित ही रहने दो
??