*अध्याय 9*
अध्याय 9
सुंदर लाल जी के सदुपदेश
दोहा
संबंधों को मिल गया, जहॉं प्रेम-आधार
निर्मल हो विकसित हुए, अंतहीन विस्तार
1)
सुंदर लाल-गिंदौड़ी देवी ने अनंत सुख पाया
विधि के परम प्रेम को बालक पर यों सदा लुटाया
2)
बनीं गिंदौड़ी देवी मॉं पर नानी ही कहलाईं
सदा श्रेष्ठ कर्तव्य भावनाऍं ही सदा निभाईं
3)
नाना सुंदर लाल बन गए ताऊ अब कहलाते
कहता राम प्रकाश उन्हें जब ताऊ खुश हो जाते
4)
इस तरह रात दिन आते-जाते वर्ष बीतते जाते
बालक राम प्रकाश सत्य शुभ संस्कारों को पाते
5)
उनको सुंदर लाल बताते धन को बड़ा न मानो
धन छोटा है बस चरित्र निर्मल करने की ठानो
6)
बड़ा वही है जग में जिसने शुभ चरित्र पाया है
मरणशील है धन की सत्ता धन केवल माया है
7)
सदा सत्य पर चलो झूठ जीवन में कभी न बोलो
तुम्हें मिलेगी निर्भयता सच्ची जुबान यदि खोलो
8)
चलो अहिंसा के पथ पर जीवों को नहीं सताना
सब में बसता एक ईश है नहीं मांस तुम खाना
9)
दया करो सब पर करुणा-मैत्री का भाव बनाओ
कपट नकारात्मक ऊर्जा है कभी न छल अपनाओ
10)
सुन लो राम प्रकाश लोभ से बुरी वस्तु कब होती
कहते सुंदर लाल ऊर्जा इससे शुभ सब खोती
11)
रखो जिंदगी में मितव्ययता संयम को अपनाओ
बहुत बड़ा गुण सुनो सादगी इस पर बढ़ते जाओ
12)
करो प्रेम सबसे जीवन में मैत्री को अपनाना
नहीं भूलकर कभी शत्रुता-कटुता पास न लाना
13)
कभी न कड़वे वचन बोलना मीठी बोली बोलो
सदा प्यार से द्वार हृदय के सारे जग को खोलो
14)
नहीं कामना-इच्छाओं का बोझा ज्यादा ढोना
नहीं दास तुम लोभीपन के इस जीवन में होना
15)
उसे ईश मिलते हैं केवल जिसने सब कुछ खोया
उसे ईश मिलते हैं जो है महाशून्य में सोया
16)
सदा याद यह रखो जगत में मृत्यु सदा आती है
जो आया है जग में उसको शत्रु-मृत्यु खाती है
17)
नहीं बचा है एक मरण से सबको जग से जाना
सब जग ही में रह जाता है क्या खोना क्या पाना
18)
चाहे जितना संग्रह कर लो नहीं भूख मिट पाती
जो संग्रह करता उसको भी मृत्यु एक दिन खाती
19)
उतना बस काफी जग में आवश्यकता हो पूरी
इससे ज्यादा अगर जोड़ता हुई ईश से दूरी
20)
सुनो सत्य कहता हूॅं राम प्रकाश सत्य यह मानो
जग में केवल एक सत्य है ईश्वर बस यह जानो
21)
सब उसके ही भीतर हैं सब उसके ही उपजाए
सभी चल रहे उसी एक में उसमें सभी समाए
22)
वह ईश्वर कर रहा कर्म, पर कर्ता नहीं कहाता
किसी कर्म में लिप्त नहीं वह किंचित पाया जाता
23)
सदा स्मरण करो उसी को उसके ही गुण गाओ
महाशून्य है वह परमेश्वर उसमें ही खो जाओ
24)
वही ध्यान के योग्य, हमारा वह ही ध्यान लगाता
वही ध्यान में ले जाता है, वही ध्यान में आता
25)
जग में दीख रहा है जो भी नाशवान सब पाया
मरणशील है घर धन-दौलत मरणशील है काया
26)
जग के सब संबंध छूटते सब दो दिन के नाते
गए सभी इस दुनिया से जो आते हैं वे जाते
27)
इस तरह रहो समता में स्थित मध्य मार्ग अपनाओ
बहुत अधिक मत खाओ मत भूखे रहकर सो जाओ
28)
नहीं बहुत ज्यादा जगना, ज्यादा सोना दुखदाई
मिले उसी को ईश मध्य में मति जिसकी है आई
29)
रहो इस तरह सदा जगत में तुष्ट भाव को पाओ
जो भी मिले उसी में मन में पूर्ण भावना लाओ
30)
नहीं मिला तो ठीक, मिल गया तो भी ठीक कहाता
मिला चला जाए तो समझो इतना ही था नाता
31)
कहने का अभिप्राय मिले जो उसमें खुशी मनाओ
हर स्थिति में उसी एक परमेश्वर के गुण गाओ
32)
सदा उसी का चिंतन अच्छा उसमें ही रत रहना
धन्यवाद हर समय ईश का जो भी करता कहना
33)
करो कर्म इस जग में सुंदर, कर्ता भाव न लाना
यही ईश का जो लक्षण है, उसको तुम अपनाना
34)
अहंकार है त्याज्य विनय से जीवन में भर जाओ
उठा शीश है शत्रु आप ही नीचे उसे झुकाओ
दोहा
गोदी में जो पालते, देते सुंदर ज्ञान
उनको नव-निधि मानिए, वह हैं मनुज महान
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