*अध्याय 11*
अध्याय 11
रामप्रकाश जी को सुंदर लाल जी के वियोग की पीड़ा
दोहा
गए मनुज संसार से, टूटे सब संबंध
फूल झरा जो डाल से, रहती किंतु सुगंध
1)
ताऊ सुंदर लाल खो गए राम प्रकाश व्यथित थे
उनका तन मन प्राण सभी कुछ ताऊ को अर्पित थे
2)
हृदय रो रहा था उनका, मन में ऑंधी आती थी
यह वियोग की पीड़ा उनसे सही नहीं जाती थी
3)
ताऊ के सॅंग जीवन के जो तीस वर्ष बीते थे
वह अक्षय निधि अगर नहीं तो जीवन से रीते थे
4)
अहो विधाता ने कैसी यह निष्ठुर रीति बनाई
जिसने पाला मुझे, चिता में उसके आग लगाई
5)
अरे-अरे क्यों क्रूर मृत्यु इस जीवन में आती है
क्यों हमसे यह अरे छीनकर प्रियजन ले जाती है
6)
क्यों मिलता है हमें प्रेम फिर उसको हैं हम खोते
देव-देव हे क्रूर अरे तुम देखो हमको रोते
7)
छीन लिया ताऊ को मुझसे अब मैं क्यों जीता हूॅं
अरे-अरे मैं तनिक कामना से बिल्कुल रीता हूॅं
8)
कहते राम प्रकाश देव यह क्या तुमने कर डाला
छीन लिया क्यों उन बॉंहों को मुझे जिन्होंने पाला
9)
सदा रहे तुम ताऊ मुझको केवल देने वाले
नहीं रहे तुम कभी देवता किंचित लेने वाले
10)
तुमने मुझको सब कुछ सौंपा, अपना प्यार दिया था
तुमने कभी न चाहा मुझसे केवल प्यार किया था
11)
यह था प्यार विलक्षण तुमने यह जो मुझे दिया था
नहीं सोचता जग में कोई तुम-सा कहीं जिया था
12)
तुम्हें हर घड़ी हर पल मेरी चिंता सिर्फ सताती
मेरे शुभ की एक कामना केवल तुमको आती
13)
अरे-अरे यह प्यार भला मैं कब कैसे पाऊॅंगा
मैं कंगाल तुम्हें खोकर आजीवन हो जाऊॅंगा
14)
देवदूत बनकर तुम मेरे जीवन में आए थे
रहित कामना से हो सब कुछ मेरे हित लाए थे
15)
अरे अभागा मैं तुमको अर्पण कुछ कब कर पाया
मुझे गोद ले नहीं तुम्हारे कुछ हिस्से में आया
16)
चले गए मुझको सब देकर देवलोक को पाया
किंतु अभागा मैं मैंने वह दिया सिर्फ ही खाया
17)
नहीं-नहीं संतोष नहीं मुझको जीवन में आता
नहीं मानता मन मेरा क्या तुमसे इतना नाता
18)
कैसे भूलूॅं भला संग जो बरसों-बरस बिताए
कैसे भूलूॅं भला प्यार के क्षण जो तुमसे पाए
19)
जग में नहीं मिलेगा तुम जैसा नि:स्वार्थ निराला
जिसने नहीं कामना पाले सुत औरों का पाला
20)
तुम ताऊ हो मेरे जीवन के तुम ही हो नायक
तुम ही मुझे व्यग्र करते हो तुम ही हो सुखदायक
21)
ताऊ सुंदर लाल याद में जितने आते जाते
राम प्रकाश युवक के ऑंसू और-और गहराते
22)
भला कहॉं साकार तुम्हारी छवि को मैं पाऊॅंगा
नश्वर तन जो मिला धूल में कैसे बिसराऊॅंगा
23)
कहो विधाता क्यों ऐसे छोटे संबंध बनाते
पलक झपकते ही जीवन में जो ओझल हो जाते
24)
अगर तोड़ना ही था नाता क्यों संबंध बनाया
क्यों यह गहरे रोम-रोम में तुमने देव बिठाया
25)
कैसे भूलूॅं मुझे याद तुम रोज बहुत आते हो
कभी रुलाते हो वियोग में, पर सुख दे जाते हो
दोहा
जीवन में आता रहा, मिलना और बिछोह
देह और संसार से, करना कभी न मोह
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